ब्लैक फंगस को जड़ से समाप्त करने का फिलहाल एकमात्र विकल्प

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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक प्रो. रविकांत का कहना है कि एम्फोटेरिसिन बी के प्लेन इंजेक्शन के इस्तेमाल के दौरान एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) खतरा बना रहता है, लेकिन चिकित्सक की सबसे पहली प्राथमिकता मरीज की जान को बचाना होता है।ऐसे में अस्पताल की एकेआई प्रबंधन की व्यवस्थाओं की मरीज की रिकवरी में बेहद अहम भूमिका होती है। ब्लैक फंगस के इलाज में एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन चिकित्सकों की पहली पसंद है, लेकिन एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन के मरीज की किडनी के लिए काफी नुकसानदायक होने की बात सामने आ रही है।कई विशेषज्ञ यह भी दावा कर रहे हैं कि एम्फोटेरिसिन के लगातार प्रयोग से किडनी फेल्योर होने से मरीज की जान भी जा सकती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक प्रो. रविकांत बताते हैं कि दवा के हर सॉल्ट के अपने साइड इफेक्ट होते हैं। जैसे बुखार में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली दवा पैरासिटामोल के निर्धारित मात्रा से अधिक सेवन करने पर लिवर फेल्योर हो सकता है।प्रो. रविकांत का कहना है कि एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन नेफ्रोटॉक्सिक होता है, लेकिन ब्लैक फंगस के संक्रमण को जड़ से समाप्त करने का फिलहाल एक मात्र विकल्प है। मरीजों के इलाज में लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन का इस्तेमाल भी हो रहा है।

यह प्लेन एम्फोटेरिसिन के मुकाबले कम नुकसानदायक होता है, लेकिन प्लेन एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन बी से 10 से 15 गुना महंगा भी होता है। प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि मरीज का शरीर इलाज के दौरान जैसा रिस्पांस करता है। वैसे ही दवा की मात्रा में बदलाव किया जाता है।

उन्होंने कहा कि अगर ब्लैक फंगस के मरीज को एम्फोटेरिसिन बी का इंजेक्शन देने के दौरान एक्यूट किडनी इंजरी होती है तो एम्स ऋषिकेश में उसके प्रबंधन के डायलिसिस यूनिट समेत सभी उच्चस्तरीय सुविधा और प्रशिक्षित चिकित्सकों की टीम उपलब्ध है। ऐसे में एक्यूट किडनी फेल्योर के बावजूद मरीज की जान बचाई जा सकती है।

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