उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा हो गई। यह चुनाव इस मायने में दिलचस्प होने जा रहा है कि एक राजनीतिक दल अर्श पर अपनी जगह सुरक्षित बनाए रखना चाहता है, तो दूसरा फर्श पर गिरने के बाद उठ खड़े होने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। पिछली बार भाजपा ने 70 में से 57 सीटें जीतकर कांग्रेस को 11 पर सिमटने को मजबूर कर दिया था। अब आलम यह है कि भाजपा 60 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही है, हालांकि उसके रणनीतिकार भी भलीभांति समझते हैं कि यह आसान नहीं होगा। उधर, कांग्रेस पिछली बार इतनी गहरी डुबकी लगा चुकी है कि उसे तो ऊपर आना ही है। कांग्रेस कितना आगे बढ़ेगी, यह तो मालूम नहीं, मगर एक कदम भी उठा तो यह उसकी कामयाबी गिनी जाएगी। भाजपा इतनी ऊंचाई पर है कि थोड़ी भी लड़खड़ाहट उसके पीछे खिसकने का संकेत ही होगी। बाकी जनमत जिंदाबाद।
विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही आचार संहिता लागू हो गई, लेकिन इससे ठीक पहले सरकार ने कर्मचारियों के लिए ताबड़तोड़ फैसले ले डाले। 2001 बैच के प्रत्येकपुलिस आरक्षी को दो लाख की धनराशि एकमुश्त दी गई, तो यह व्यवस्था भी कर दी गई कि कार्मिकों को पदोन्नत वेतनमान देने में चरित्र पंजिका में वार्षिक प्रविष्टि अति उत्तम होने की बाध्यता अब नहीं होगी। 124 शिक्षकों को तबादलों में राहत मिली और पेंशनरों के लिए राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना में बने रहने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी। लगे हाथ बाल कल्याण आयोग और महिला आयोग में अध्यक्षों के साथ सदस्यों की नियुक्ति कर सरकार ने एक बड़ा दांव खेला। ये पद संवैधानिक हैं और अगली बार सत्ता में कोई भी आए, ये अपने पदों पर बने रहेंगे। इसके अलावा विकास योजनाओं को लेकर भी शासनादेश हुए। यानी सरकार ने हाथ बंधने से पहले सौगात बांटने में कंजूसी नहीं दिखाई।