भाजपा या कांग्रेस नहीं, उत्तराखंड की सियासत में निर्दलियों की खूब चर्चा, क्या बनेंगे किंग मेकर

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देहरादून। उत्तराखंड की सियासत में क्या एक बार फिर निर्दलियों का दम दिखेगा? प्रदेश की सत्ता बनाने में वे फिर किंग मेकर भूमिका निभाएंगे? ऐसे ही कई सवाल सियासी हलकों में खूब गरमा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के मतदान के बाद सत्तारुढ़ भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस बेशक प्रदेश में अपनी-अपनी सरकार बनाने का दावा ठोक रहे हैं। मगर अंदर से दोनों ही दल चुनाव के नतीजों को लेकर डरे हुए हैं।
विधानसभा सीटों से जो रुझान प्राप्त हो रहे हैं, उनमें प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों के अलावा बहुजन समाज पार्टी, उत्तराखंड क्रांति दल के अलावा निर्दलियों के दमदार प्रदर्शन की भी खूब चर्चा हो रही है। हालांकि 10 मार्च को दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। लेकिन प्रदेश में सरकार बनाने को बेताब भाजपा और कांग्रेस परिणाम आने से पहले सभी तरह की संभावनाओं पर निगाह बनाए हुए हैं। 

यमुनोत्री और केदारनाथ सीट पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने दमदार चुनाव लड़ा
सियासी हलकों में तैर रही चर्चाओं के मुताबिक, यमुनोत्री विधानसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी संजय डोभाल और केदारनाथ में कुलदीप रावत ने दमदार चुनाव लड़ा। टिहरी विस सीट पर उत्तराखंड जन एकता पार्टी के प्रत्याशी दिनेश धनै ने भी भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को कड़ी चुनौती दी है। इन तीनों प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की निगाह में बने हुए हैं।
इन तीन प्रत्याशियों के अलावा यूकेडी के दो प्रत्याशियों के नामों की भी खूब चर्चा हो रही है। इनमें पहला नाम देवप्रयाग से चुनाव लड़े दिवाकर भट्ट का और दूसरा द्वाराहाट से यूकेडी प्रत्याशी पुष्पेश त्रिपाठी का है। इनके अलावा सियासी हलकों में बहुजन समाज पार्टी को लेकर भी चर्चा है। हालांकि बसपा अकेले हरिद्वार जिले में चार से छह सीटें जीतने का दावा कर रही है।

सियासी जानकार जिले की चार विधानसभा सीटों पर बसपा को दमदार मान रहे हैं। उनका मानना है कि लक्सर, मंगलौर, भगवानपुर व खानपुर विस सीटों में बसपा ने दमदार प्रदर्शन किया है। इनमें से दो से तीन सीटों पर भी वह सीधे मुकाबले में मानी जा रही है। मजेदार बात यह है कि भाजपा और कांग्रेस के सियासी हलकों में इन सभी प्रत्याशियों की चर्चा है, उनसे संपर्क बनाने की कोशिशों को लेकर भी बातें हो रही हैं।

खंडित जनादेश आया तो किंग मेकर साबित होंगे
भाजपा और कांग्रेस के दावे से इतर यदि प्रदेश में विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आया तो फिर निर्दलीय व अन्य दलों के प्रत्याशी किंग मेकर भूमिका में होंगे। 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव इसके गवाह हैं। इन दोनों ही चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। तब गैरभाजपा और गैर कांग्रेसी विधायकों की मदद से सरकारों का गठन हुआ। 2017 के विस चुनाव में भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत था, इसलिए निर्दलीय को उतना महत्व नहीं मिल सका। 

चार चुनाव में किसने कितना दिखाया दम

विस चुनाव बसपा यूकेडी/यूकेडीपी निर्दलीय
2002 07   04 03
2007 08 03 03
2012 03 01 03
2017    00    00 02

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