देहरादून : पांच अक्टूबर को दशहरा के दिन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक रावण दहन किया जाएगा, लेकिन भारत में एक ऐसा पहाड़ी क्षेत्र भी है जहां उस दिन रावण दहन नहीं होगा। जी हां, उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित इस पहाड़ी क्षेत्र के दो गांवों में दशहरा के दिन रावण दहन नहीं किया जाता है।
यह अनोखी परंपरा देहरादून जिले के चकराता में कालसी ब्लॉक में देखने को मिलती है। कालसी के दो गांवों उत्पाल्टा और कुरोली में इन दिन पश्चाताप के लिए गागली युद्ध लड़ा जाता है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग गावों में पहुंचते हैं। आइए जानते हैं क्या है यह गागली युद्ध :
दशहरे पर आयोजित किया जाता है गागली युद्ध
- देहरादून जिले में स्थित जनजातीय क्षेत्र जौनसार में गागली युद्ध अब एक परंपरा बन चुका है। गागली युद्ध दशहरे पर आयोजित किया जाता है।
- जौनसारी बोली में इसे पाइंते कहा जाता है। दशहरे के दिन उत्पाल्टा और कुरोली गांव के ग्रामीण गागली युद्ध खेलते हैं।
- गागली युद्ध को पश्चाताप के रूप में खेला जाता है और यह पश्चाताप दो बहनों की मौत से लेकर जुड़ा हुआ है।
- एक किंवदंती के अनुसार उत्पाल्टा गांव की दो बहनें रानी और मुन्नी क्याणी नामक स्थान पर कुएं से पानी भरने गई थीं। इस दौरान रानी कुएं में गिर गई।
- जब मुन्नी ने घर पहुंचकर यह बात बताई तो सबने मुन्नी पर रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगाया।
- इससे दुखी होक मुन्नी ने भी कुंए में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। जिसके बाद ग्रामीणों को अपने किए पर दुख और पछतावा हुआ।
- तभी से इस घटना के पश्चाताप के रूप में पाइंता यानी दशहरे से दो दिन पहले मुन्नी और रानी की मूर्तियों की पूजा की जाती है।
- इसके बाद दशहरे के दिन दोनों की मूर्तियां कुएं में विसर्जित की जाती हैं। इस दौरान गागली युद्ध का आयोजन किया जाता है।
अरबी के पत्तों और डंठलों से होता है युद्ध
अरबी के पत्तों और डंठलों से गागली युद्ध लड़ा जाता है। इसमें किसी पक्ष की हार या जीत नहीं होती, ये युद्ध तो सिर्फ पश्चाताप के लिए लड़ा जाता है। युद्ध समाप्त होने पर ग्रामीण गले मिलकर एक दूसरे को पर्व की बधाई देते हैं।
युद्ध के दौरान ग्रामीण सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठा होते हैं और ढोल-नगाड़ों-रणसिंघे की थाप पर हाथ में गागली के डंठल व पत्तों को लहराते हुए खूब नाचते-गाते हैं। इस दौरान सामूहिक रूप से नृत्य किया जाता है।