मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के जन्मदिवस पर जाने उनसे जुड़ी खास बाते

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देहरादून। संवाददाता।
आशीष बडोला।

उत्तराखंड राज्य के त्रिवेंद्र सिंह रावत आज 59 साल के हो चुके हैं। वहीं आज उनके जन्मदिन के मौके पर देहरादून में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। साथ ही विपक्ष ने भी उनके जन्मदिन पर बधाई संदेश दिए। वहीं बात अगर उनके राजनीति सफर की करें तो उनका ये सफर काफी उथल-पुथल के बीच गुजरा आज उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको बताएंगे कि कैसा रहा उत्तराखंड के 9वें सीएम का राजनैतिक सफरनामा और कैसे वो एक आम व्यक्ति से सीएम की कुर्सी तक पहुंचे पढ़े हमारी इस खास रिपोर्ट में।

2017 में उत्तराखंड में सत्ता बदली और सत्ता में आसीन चेहरे भी भाजपा की प्रचंड जीत के साथ 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 9वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 20 दिसंबर 1960 को पौड़ी गढ़वाल के जहरीखाल ब्लॉक के खैरासैंण गांव में सीम त्रिवेंद्र सिंह रावत का फौजी परिवार में जन्म हुआ । सीएम त्रिवेंद्र ने आठवीं तक की पढ़ाई अपने मूल गांव खैरासैंण के ही स्कूल में की। इसके बाद 10वीं की पढ़ाई सतपूली इंटर कॉलेज और फिर 12वीं इंटर कॉलेज एकेश्वर से की। त्रिवेंद्र ने स्नातक राजकीय महाविद्यालय जहरीखाल से किया, जबकि पत्रकारिता की पढ़ाई गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर कैंपस से की। उत्तराखंड स्थित गढ़वाल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी से जुड़ गए थे। स्कूल के दिनों में उन्हें कई दस किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलकर स्कूल पहुंचना होता था, सीएम खुद कहते हुए कई बार मीडिया में सुने गए हैं, उनके जीवन का मकसद समाजसेवा करना था, जो ईश्वर ने उन्हें मुख्यमंत्री के तौर जनता के लिए चुना है। यदि वह राजनीति में नहीं होते तो तब भी वह समाज सेवा के कार्यों में रूचि दिखाते।

सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत 19 साल की उम्र में स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। इसके बाद वह संघ की शाखाओं में नियमित रूप से जाने लगे। इस दौरान उन्होंने चटाई बिछाने का काम हो, या एक सेवक की तरह संगठन को मजबूती देना, वह सभी जिम्मेंदारियों में खरे उतरे। 1981 में संघ की विचारधारा का उनपर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने बतौर प्रचारक ही काम करने का फैसला कर लिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरठ में तहसील प्रचारक बन गए और संघ की विचारधारा का प्रचार करने लगे। 1985 में उन्हें देहरादून महानगर का प्रचारक बनाया गया। 1993 में संघ की ओर से उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। उत्तराखंड आंदोलन में भी त्रिवेंद्र रावत की अहम भूमिका रही। आपको बताते चलें कि वह कई बार गिरफ्तार भी हुए और उन्हें जेल भी भेजा गया।

 

1997 से 2002 तक वह प्रदेश संगठन मंत्री रहे। संगठन मंत्री का पद संघ के किसी व्यक्ति को ही दिया जाता है, जिसका काम बीजेपी और संघ के बीच समन्वय बनाना होता है। रावत ने कुछ समय तक यूपी में लालजी टंडन के ओएसडी के रूप में भी काम किया। 9 नवंबर, 2000 उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में रावत पहली बार डोइवाला सीट से विधायक चुने गए थे। 2007 में डोईवाला से दोबारा रिकॉर्ड मतों से उन्होंने जीत दर्ज की और कृषि मंत्री बने। इस दौरान बीजेपी ने विधानसभा, लोकसभा और विधान परिषद चुनावों में बड़ी सफलताएं हासिल कीं। 2012 में उन्होंने राज्य की रायपुर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए।

2013 में पार्टी ने त्रिवेंद्र रावत को राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी। 2014 में डोईवाला के उपचुनाव में उन्हें हार मिली, जबकि 2017 में हुए चुनाव में वह डोइवाला से जीत गए। 2017 में जब उत्तराखंड में भाजपा ने प्रचंड जीत के साथ जब सत्ता बनाई तो उस दौरान उत्तराखंड में सीएम पद के लिए दौड़ में कई नाम थे, लेकिन इस दौरान त्रिवेंद्र रावत का बैकग्राउंड सबसे निर्णायक फैक्टर साबित हुआ। संघ के एक नेता ने कहा था कि, अगर प्रचंड बहुमत में भी ‘अपने आदमी’ को मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली तो ऐसे बहुमत का क्या फायदा। संघ के एक नेता ने यह भी दावा किया था कि संघ की पृष्ठभूमि से आए लोगों के अलावा किसी और के नाम पर विचार ही नहीं किया जाए। संघ की प्रदेश इकाई ने रावत के नाम पर मुहर लगाकर अमित शाह को संदेश भिजवाया था।

राजनीतिक जीवन’ त्रिवेंद सिंह रावत का राजनीति का सफर 1979 में शुरू हुआ जब वे राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े.
’ 1981 तक उन्होंने संघ का प्रचार किया और इसमें लगन व मेहनत दिखाई.
’ 1985 में त्रिवेंद रावत देहरादून नगर के प्रचारक बने.
’ 1993 में सामाजिक एवं संघटन मंत्री बने.
’ 1997 में उत्तराखंड प्रदेश के संघटन महामंत्री बनाये गये.
’ 2002 में रावत डोईवाला वाला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ें और जीत मिली.
’ 2007 में फिर डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते और बीजेपी के मंत्रीमंडल में कैबिनेट मंत्री के तौर पर कैबिनेट मंत्री बने.

’ 2017 में डोईवाला क्षेत्र से चुनाव लड़े और विजयी हुए और विधायक दल के नेता के रूप चुन लिये गये.
’ उसके बाद 17 मार्च को उत्तराखंड के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री बनाये गये।
वहीं 2017 में सत्ता संभालने के बाद सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई अहम फैसले लिए। आज उनके कार्याकाल को ढाई साल से ऊपर का समय हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नक्शे कदम पर चलकर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई ऐसे कार्य किए जिसके कायल हर कोई है । हांलकि विपक्ष उनके कार्यें को लेकर उन्होंने जरूर घिरने का काम तो करता है लेकिन राज्य के लिए उनकी दूर्दर्शी सोच को देखते हुए विपक्ष भी मन ही मन उनके कार्यें की तारीफ करता है। मुख्यमंत्री के विशेष कार्य अधिकारी धीरेंद्र सिंह पवार का कहना है कि प्रदेश के ईमानदार मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का जन्म दिवस आज पूरे प्रदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है, हमारे प्रदेश को एक इमानदार छवि का कठोर निर्णय लेने वाला मुख्यमंत्री मिला है यह हमारे प्रदेश का सौभाग्य है। उन्हें देश के राज्यों में सबसे बेहतर मुख्यमंत्री का सम्मान भी दिया गया है।

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