वर्ष 2016 में विधानसभा में हुई तदर्थ नियुक्तियों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विधानसभा अध्यक्ष रहे गोविंद सिंह कुंजवाल का एक बार फिर बचाव किया है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि कुंजवाल को आगाह करते हुए वे कहे थे कि आप आग से खेल रहे हैं।
पत्रकारों से बातचीत में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि उन्होंने विधानसभा का सत्र गैरसैंण में कराने का निर्णय लिया था। मुख्यमंत्री रहते हुए वह खुद चाहते थे कि विधानसभा सचिवालय गैरसैंण से संचालित हो। बकौल हरीश रावत, मैंने अपनी यह मंसा विस अध्यक्ष रहे गोविंद सिंह कुंजवाल के सामने रखी। तब उन्होंने कहा था इसके लिए कुछ पदों पर भर्तियों की आवश्यकता होगी।
इसके बाद वह प्रस्ताव लेकर आए, जिसे हमने वित्त, कार्मिक और न्याय विभाग की स्वीकृति के बाद आगे बढ़ाया। हालांकि इस पूरे प्रकरण में मैंने खुद कुंजवाल से कहा था, आप आग से खेल रहे हैं। एक सिस्टम बना दीजिए आगे के लिए। तब कुंजवाल ने कहा था कि उन्होंने विधानसभा सचिव के निर्देशन में एक व्यवस्था बना ली है, ताकि न्यूनतम अर्हताएं चेक होती रहें। बेटे और बहू को नौकरी के सवाल में पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि इसमें नैतिकता का प्रश्न तो है, लेकिन इसे अनैतिक नहीं कहा जा सकता। क्योंकि भर्ती प्रक्रिया वैध तरीके से की गई है।
यूकेएसएसएससी से ध्यान भटकाने की हो रही कोशिश
पूर्व सीएम ने कहा कि कुछ लोग उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग प्रकरण से ध्यान भटकाने के लिए भी विधानसभा में हुई भर्तियों के मामले को जोर शोर से उठा रहे हैं। जबकि तमाम भर्ती परीक्षाओं में धांधली का मुद्दा ज्यादा बड़ा है।
सीबीआई जांच की मांग की और उसके परिणाम भी बताए
हरीश रावत ने कहा कि राज्य में चल रहे भर्ती घोटाले की जांच सीबीआई करे, पहले वह ऐसा कहने से बच रहे थे। उसकी वजह यह है कि यदि भर्तियों की सीबीआई जांच शुरू हुई तो अगले तीन से पांच साल तक संभव है कि प्रदेश में कोई भर्ती ही न हो। यह युवाओं के साथ अन्याय होगा, लेकिन अब जब पंचों की राय बन रही है तो वह भी हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग करते हैं।
पैसा लेकर नियुक्तियां हुईं तो दंड मिले
पूर्व सीएम ने कहा कि पदों पर बैठे व्यक्तियों के ऊपर दबाव होता है, लेकिन यदि नियुक्तियों में पैसे की बात सामने आती है तो निश्चित तौर पर ऐसा करने वाले को दंड मिलना चाहिए। पूर्व विधान सभा अध्यक्ष के बचाव में कहा कि, कुंजवाल के समय में हुई नियुक्तियों में कभी भी पैसे के लेन-देन की कोई बात सामने नहीं आई।