देहरादून। गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों को राज्य के भीतर ही सीधे आपस में जोड़ने वाली कंडी रोड (रामनगर-कालागढ़-चिलरखाल-लालढांग) के चिलरखाल-लालढांग हिस्से के निर्माण के मद्देनजर निगाहें अब राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्लूएल) की 11 जून को होने वाली बैठक पर टिक गई हैं। बैठक में सड़क के निर्माण में पुलों की ऊंचाई समेत अन्य मसलों को लेकर फैसला हो सकता है। इस बीच राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने भी महानिदेशक वन को पत्र भेजकर सड़क के निर्माण को फारेस्ट क्लीयरेंस से छूट देने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि जिस हिस्से में सड़क है, वह संरक्षित क्षेत्र के दायरे में नहीं आता।
लैंसडौन वन प्रभाग के अंतर्गत आने वाली चिलरखाल-लालढांग सड़क राजाजी टाइगर रिजर्व से सटी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के क्रम में प्रदेश सरकार ने इस सड़क के निर्माण के लिए प्रस्ताव राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भेजा, जिस पर अनुमति भी मिल गई। इस बीच सड़क निर्माण के सिलसिले में कसरत हुई तो पुलों की ऊंचाई का पेच फंस गया। एनबीडब्लूएल ने यहां पुलों की ऊंचाई आठ मीटर रखने को कहा है, जबकि राज्य इसे साढ़े पांच मीटर रखना चाहता है। राज्य की ओर से एनबीडब्लूएल से यह शिथिलता देने का आग्रह किया गया है।
बोर्ड ने इसकी पड़ताल के लिए एक कमेटी गठित की, जो सड़क का मौका मुआयना कर चुकी है। हालांकि, अब सड़क के लिए फारेस्ट क्लीयरेस न लिए जाने का मसला भी तूल पकड़ने लगा है। ऐसे में सभी की निगाहें एनबीडब्लूएल की बैठक पर जा टिकी हैं। इस बीच राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने महानिदेशक वन और विशेष सचिव वन पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजे पत्र में बताया है कि लालढांग-चिलरखाल मार्ग वन अधिनियम 1980 के लागू होने से पहले से अस्तित्व में है। यह पुरानी डामरीकृत सड़क राजाजी टाइगर रिजर्व के संरक्षित क्षेत्र के दायरे में नहीं आती।
ऐसे में इसके निर्माण के लिए फारेस्ट क्लीयरेंस की जरूरत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा है कि कोरोनाकाल में इस सड़क का महत्व अधिक बढ़ गया है। यह मार्ग पौड़ी जिले के कोटद्वार समत अन्य स्थानों से मरीजों को चिकित्सा सुविधा के लिए ऋषिकेश व देहरादून आने-जाने के लिए सबसे सुगम है। इसके निर्माण से जहां उप्र से होकर आने-जाने के झंझट से निजात मिलेगी, वहीं धन व समय की बचत भी होगी।