उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में इस बार होने वाले वर्षाकालीन पौधारोपण में मानीटरिंग पर खास फोकस रहेगा। इसके तहत प्रत्येक क्षेत्र में पौधे लगाने से पहले और बाद की तस्वीरें लेना अनिवार्य किया गया है। साथ ही ड्रोन के जरिये पौधारोपण पर नजर रखी जाएगी। यही नहीं, वार्षिक आधार पर नियमित अंतराल में भी पौधारोपण वाले क्षेत्रों की तस्वीरें ली जाएंगी, ताकि पता चल सके कि कितने पौधे जीवित हैं और कितने नष्ट हुए हैं।
प्रदेश के वन क्षेत्रों में हर साल ही औसतन डेढ़ से दो करोड़ पौधे तो लगाए जा रहे, मगर इनमें से जीवित कितने रह रहे हैं, इसे लेकर तस्वीर किसी से छिपी नहीं है। तय मानकों के अनुसार रोपित किए जाने वाले 100 पौधों में से 70 से 75 का जीवित रहना बेहतर माना जाता है, लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। यदि राज्य गठन के बाद से ही अब तक रोपे गए 70 फीसद पौधे ही जीवित रहते तो आज वनावरण कहीं आगे बढ़ चुका होता, लेकिन अभी भी यह 46 फीसद के आसपास ही बना हुआ है। साफ है कि रोपे गए पौधों में आधे भी जिंदा नहीं रह पा रहे हैं।इस सबको देखते हुए वन महकमे ने वर्षाकालीन पौधारोपण को बेहद गंभीरता से लेने का निश्चय किया है। इस मर्तबा 14 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में 1.40 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है। वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी ने बताया कि सभी वन प्रभागों और संरक्षित क्षेत्रों के अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी क्षेत्र में पौधारोपण से पहले संबंधित क्षेत्रों की केएमएल फाइल उपलब्ध कराई जाए, ताकि गूगल मैप के जरिये भी पड़ताल की जा सके।पौधारोपण वाले क्षेत्रों की नियमित अंतराल में तस्वीरें लिए जाने से वास्तविक धरातलीय स्थिति सामने आएगी। यानी, जहां कमियां होंगी, उसे तत्काल दूर कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि ड्रोन की उपलब्धता सभी प्रभागों में है। इनका उपयोग पौधारोपण की मानीटरिंग में किया जाएगा।