ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे जलवायु परिवर्तन में ग्रीन हाउस गैसों कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हैलो कार्बन (क्लोरोफ्लोरो कार्बन, हाइड्रोफ्लोरो कार्बन, कॉर्बन टेट्राक्लोराइड) की भूमिका है। वायुमंडल में इनकी वृद्धि से पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है।हाइड्रोफ्लोरो कार्बन गैस हजार गुना अधिक शक्तिशाली
जैव प्रौद्योगिकी परिषद (बायोटेक) हल्दी के वैज्ञानिक डॉ. मणिंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि पर्यावरण की बिगड़ती सूरत में ग्रीनहाउस गैसों एवं जलवायु परिवर्तन की भूमिका लगभग 45 प्रतिशत है। इसमें करीब 20 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन वनों और पेड़ों के कटान, 14 प्रतिशत यातायात और शेष 11 प्रतिशत के लिए अन्य कारक जिम्मेदार हैं।
हाइड्रोफ्लोरो कार्बन गैस 19 गैसों का एक समूह है, जो ग्लोबल वार्मिंग के मामले में कार्बन डाई ऑक्साइड से हजार गुना अधिक शक्तिशाली है, ऐसे में एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर का इस्तेमाल कम करके इसकी (हाइड्रोफ्लोरो कार्बन गैस) मात्रा में कमी लाई जा सकती है।
नासा के शोध से यह भी पता चला है कि लॉकडाउन के चलते वैश्विक ओजोन प्रदूषण में दो प्रतिशत की कमी देखी गई है, जो पर्यावरण बेहतरी के लिए शुभ संकेत है लेकिन आवश्यकता से अधिक कार्बन पर्यावरण में फैलकर पृथ्वी के तापमान को बढ़ा रहा है। इससे पृथ्वी पर पारिस्थितिक तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
डॉ. शर्मा ने बताया कि ओजोन एक रंगहीन गैस है, जिसका नियंत्रित मात्रा में पृथ्वी पर होना मददगार साबित होता है। पृथ्वी की सतह के नजदीक अधिक ओजोन गैस का होना भी मानवजीवन के लिए खतरनाक साबित होता है।
क्लोरो फ्लोरोकार्बन से ज्यादा खतरा
ओजोन परत को ग्रीनहाउस गैसों मुख्यतया क्लोरो फ्लोरोकार्बन से ज्यादा खतरा होता है, जो परत का क्षरण करके पृथ्वीवासियों को नुकसान पहुंचाती है।
भौतिक सुख सुविधाओ में कमी की सर्वश्रेष्ठ नीति अपनाकर, अधिक से अधिक पेड़ लगाकर, व्यवहार में प्रकृति आधारित परिवर्तन लाकर, सीएनजी और कम कार्बन उत्सर्जन वाले ईंधनों, पब्लिक यातायात का उपयोग करके काफी हद तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है।