नैनीताल। रोजगार और अन्य सुविधाओं की कमी के चलते पलायन उत्तराखंड की एक बड़ी समस्या बना है। रोजगार की तलाश में पढ़े लिखे युवा बड़े शहरों की ओर रुख कर रहे है। वहीं कुछ ऐसे लोग भी है जो वर्षों बाहर काम करने के बाद अपने बूते खुद का रोजगार शुरू कर नजीर पेश कर रहे हैं। ऐसी ही एक कहानी है 37 वर्षीय विजय कुमार की। करीब 20 साल हिमांचल में नौकरी करने के बाद वापस लौटे विजय को रोजगार शुरू करने के लिए न दुकान की जरूरत पड़ी और न ही ठिकाने की। हाथों में लिए एक झोले में कुछ गिलास और थर्मस में चाय लेकर हर रोज सुबह 11 बजे उनका सफर शुरू होता है, जो रात आठ बजे तक चलता है। इससे रोजाना विजय इतना कमा लेते है कि आसानी से घर चल सकें।
मूल रूप से सतबुंगा मुक्तेश्वर निवासी विजय कुमार बताते है कि जब वह करीब 15 साल के थे तभी घर से निकल गए। घर से हिमांचल पहुँच उन्होंने होटलों में काम करना शुरू किया। शुरुआत में साफ सफाई से शुरू किए काम मे सीखने के हुनर के चलते उन्हें जल्द ही किचन में काम करने का मौका मिल गया। फिर क्या था काम करने के दौरान उन्होंने अलग अलग तरह की डिशे बनाना सीख लिया। मगर काम करने के बावजूद मिलने वाली तनख्वाह गुजर बसर करने के लिए पर्याप्त नहीं पड़ती थी। जिस कारण चार साल पहले वह नैनीताल लौट आये। यहाँ कुछ दिन भोटिया मार्केट स्थित किसी रेस्टोरेंट में काम किया। मगर मन को नहीं भाया तो हुनर का इस्तेमाल कर खुद का काम करने का मन बना लिया। अब वह बीते चार वर्षों से रोजाना अपनी बनाई फ्लेवर्ड चाय लोगों को पिलाते है।
13 तरह की चाय का लोग भी करते है इंतजार
विजय की चाय अब शहरवासियों की आदतों में शुमार हो गयी है। उनकी चाय के लोग इस कदर दीवाने है कि देरी होने पर लोग घंटो इंतजार भी कर लेते है। विजय बताते है कि वह 13 फ्लेवर की चाय बना लेते है। जिसमें मसाला टी, प्लेन टी, बटर टी, जिंजर टी, ब्लेक टी, तुलसी टी, लेमन टी, ग्रीन टी, चॉकलेट टी, हर्बल टी सबसे खास है।
लिमिटेट है काम फिर भी बचा लेते है 15-18 हजार
विजय में बताया कि उनका काम लिमिटेट है। वह रोजाना के कस्टमरों को ही चाय पिलाते है। जिस कारण उनके चाय के दाम भी पांच से दस रुपये तक ही है। रोजाना छह थर्मस में मसाला, नार्मल और बटर टी बना कर लाते है। जो कुछ ही घंटों के खत्म हो जाती है। जिससे वह हर माह 15 से 18 हजार तक बचा लेते है।