सुरक्षा मानकों पर खरी है ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना, जोशीमठ आपदा का कोई असर नहीं

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ऋषिकेश: जोशीमठ में भूधंसाव से उपजे हालात को देखते हुए पर्वतीय क्षेत्र में संचालित होने वाली महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को लेकर सभी लोग चिंतित हैं।

ऐसे में पहाड़ पर रेल चढ़ाने की स्वप्निल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना को लेकर भी चिंता बढ़ना लाजिमी है। हालांकि, रेल विकास निगम का स्पष्ट कहना है कि यह परियोजना पूरी तरह से सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। जो हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम है।

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना की कुल लंबाई 125 किमी
भूगर्भीय परिवर्तन किसी भी क्षेत्र की स्थिति को प्रभावित करता रहा है। जोशीमठ में उपजे हालात के लिए वहां संचालित होने वाली योजना के तहत भूमिगत कार्यों को भी बड़ा कारण माना जा रहा है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना की बात करें तो इसकी कुल लंबाई 125 किमी है और यह 17 सुरंगों से होकर गुजरेगी।

इनमें सबसे लंबी सुंरग 14.08 किमी (देवप्रयाग से जनासू के बीच) की है। जबकि, सबसे छोटी सुरंग 200 मीटर सेवई से कर्णप्रयाग के बीच है। 11 सुरंगों की लंबाई छह-छह किमी से अधिक है।

जोशीमठ आपदा के बाद ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना में सुरक्षा मानकों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि, रेल विकास निगम की स्पष्ट मान्यता है कि जोशीमठ आपदा का इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लिहाजा इस पर सवाल खड़े करना उचित नहीं है।

निगम के अनुसार परियोजना के तहत जितनी भी सुरंगों का निर्माण होना है, उनका काम प्रारंभिक चरण से आगे बढ़ गया है। सुरंग निर्माण से पहले सबसे महत्वपूर्ण बात टनल पोर्टल यानी उसके प्रवेश क्षेत्र के निर्माण से जुड़ी है। जितनी भी सुरंग बनाई जा रही हैं, सभी सुरक्षित स्थानों पर हैं। कहीं पर भी भूमि का धंसाव और भूमि की अस्थिरता की समस्या नहीं है। इस दिशा में पूरा अध्ययन करने के बाद ही काम शुरू किया गया है।

रेल परियोजना के 125 किमी मार्ग पर उच्च तकनीक से भूगर्भीय जांच के बाद ही एलाइनमेंट किया गया। इसमें सुरंग प्रवेश का कार्य सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि संबंधित क्षेत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित भूगर्भीय परिवर्तन ही करता है।

सुरंग का निर्माण भूमि के भीतर होना है। सभी जगह नियंत्रित तरीके से ब्लास्टिंग की जा रही है। यह इसलिए भी जरूरी है कि ब्लास्टिंग के बाद उठने वाली भूमिगत कंपन सीमित रहे और आसपास आबादी और घरों पर इसका असर न पड़े।

रेल विकास निगम के मुख्य परियोजना प्रबंधक अजीत सिंह यादव ने बताया कि परियोजना के तहत जितनी भी सुरंग बनाई जा रही हैं, उनके प्रवेश का कार्य पूरा हो गया है। अब आगे का कार्य सुरंग में काफी गहराई तक चल रहा है। कार्य के दौरान उठने वाली भूमिगत कंपन सुरंग के भीतर तक ही सीमित है।

बताया कि चारधाम रेल परियोजना का एलाइनमेंट करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि कहीं भी भूस्खलन जोन न बने। इस लिहाज से परियोजना का स्थान चयनित किया गया है। इसलिए जोशीमठ आपदा के आलोक में इस परियोजना को लेकर किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है।

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