नैनीताल हाईकोर्ट ने आज प्राइवेट अस्पतालों के कोरोना के समय सीटी स्कैन, एमआरआई का पीड़ितों से मनमाना पैसा वसूल करने, ऑक्सीजन कन्संट्रेटर को आवश्यक वस्तु की श्रेणी में नहीं रखने और आरटीपीसीआर की जांच रिपोर्ट एसओपी के मानकों के खिलाफ आने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। इसके बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को 11 अगस्त तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
हाईकोर्ट ने अधिवक्ता आदित्य प्रताप सिंह की ओर से लिखे पत्र का स्वत: संज्ञान लिया। अधिवक्ता ने पत्र में कहा है कि कोरोना के समय प्राइवेट अस्पतालों व लैबों की ओर से पीड़ितों से सीटी स्कैन का मनमाने ढंग से पैसा लिया जा रहा है। यह भी कहा कि ऑक्सीजन कन्संट्रेटर को सरकार ने आवश्यक वस्तु की श्रेणी में नहीं रखा गया है। साथ ही आरटीपीसीआर की जांच रिपोर्ट केंद्र सरकार की ओर से जारी एसओपी के मानकों के अनुरूप नहीं आ रही है।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने कोर्ट के पूर्व के आदेश के क्रम में सीटी स्कैन का रेट 2800 से 3200 रुपया निर्धारित कर दिया है। मिनिस्ट्री ऑफ केमिकल्स केंद्र ने भी 3 जून को देश के सभी ऑक्सीजन कन्संट्रेटर निर्माताओं से एमआरपी मंगवाकर उसका भी मूल्य तय कर दिया है। अगर अब कोई उससे अधिक रेट पर बेचता है तो उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाएगा। केंद्र ने अब इसे अति आवश्यक श्रेणी में रख लिया है।
अधिवक्ता ने कोर्ट से यह भी प्रार्थना कि है कि सरकार बॉर्डर पर आरटीपीसीआर रिपोर्ट चेक कर रही है, उसमें कई लोग फर्जी रिपोर्ट लेकर आ रहे हैं। इसी रिपोर्ट के आधार पर उनको आने जाने दिया जा रहा है।
उन्होंने कोर्ट को सुझाव दिया कि आरटीपीसीआर रिपोर्ट में एक बार कोड होता है उसके आधार पर आरटीपीसीआर रिपोर्ट की जांच की जाएं या फिर टेस्ट करते समय जो एसआरएफ मैसेज आता है उसे दिखाया जाए।अगर दोनों सही मेल खाते हैं तो रिपोर्ट ठीक है। अगर दोनों में से एक भी मेल नहीं खाती है तो रिपोर्ट गलत है या फर्जी है। इस बिंदु पर कोर्ट ने सरकार से जवाब पेश करने को कहा है।