देहरादून। सीधी भर्ती के 18 पीसीएस अधिकारी अपनी वरिष्ठता की जंग जीत गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के वर्ष 2011 के आदेश को निरस्त करते हुए तदर्थ नियुक्ति पाकर एसडीएम बने 48 अधिकारियों को जूनियर माना है। इसके साथ ही सीधी भर्ती के अधिकारियों के आइएएस बनने की राह भी खुल गई है। वरिष्ठता विवाद के चलते ही पिछले कई सालों से यह मामला लटका था।
उत्तर प्रदेश से अलग होकर वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, तब पूर्ववर्ती प्रदेश से पीसीएस अधिकारी बहुत कम संख्या में उत्तराखंड आए थे। अधिकारियों की कमी को देखते हुए सरकार ने तहसीलदार व कार्यवाहक तहसीलदारों को तदर्थ पदोन्नति देकर उपजिलाधिकारी (एसडीएम) बना दिया था। यह सिलसिला वर्ष 2003 से 2005 तक चला। उसी दौरान वर्ष 2005 में सीधी भर्ती से 20 पीसीएस अधिकारियों का चयन हुआ। इनमें से दो का अखिल भारतीय सेवा में चयन होने के चलते संख्या 18 रह गई।
विवाद की स्थिति तब पैदा हुई, जब उत्तराखंड शासन ने अधिकारियों की पदोन्नति के लिए वर्ष 2010 में एक सीधी भर्ती व एक तदर्थ पदोन्नति का फॉर्मूला तैयार कर आपत्तियां मांगीं। सीधी भर्ती के अधिकारियों ने यह कहते हुए इसका विरोध किया कि तदर्थ पदोन्नति वाले अधिकारियों को वर्ष 2007 में कन्फर्म किया गया है और वे 2005 बैच के अधिकारी हैं। शासन ने भी इसी के अनुरूप पदोन्नति निर्धारित कर दी।
इस आदेश के खिलाफ तदर्थ पदोन्नति वाले अधिकारी नैनीताल हाईकोर्ट चले गए और कोर्ट ने वर्ष 2011 में आदेश जारी कर यह माना कि वरिष्ठता क्रम तदर्थ पदोन्नति से ही गिना जाएगा। हालांकि, इस आदेश से नाखुश सीधी भर्ती के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी। आठ साल से अधिक समय तक चले इस मामले में अंतिम सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एल नागेश्वर राव व दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि तदर्थ पदोन्नति के समय को वरिष्ठता के लिए शामिल नहीं किया जा सकता। लिहाजा, वर्ष 2007 में कन्फर्म किए जाने के समय से ही 48 अधिकारियों की वरिष्ठता तय की जाएगी।
सेवा नियमावली में कट-पेस्ट पड़ा भारी
तदर्थ पदोन्नति पाकर एसडीएम बने 48 अधिकारियों और सीधी भर्ती के 18 पीसीएस अधिकारियों के बीच विवाद का कारण कट-पेस्ट कर तैयार की गई सेवा नियमावली बनी। हिंदी की नियमावली में तदर्थ पदोन्नति को स्पष्ट करने वाले शब्द छूट गए थे और अंग्रेजी की नियमावली को कोर्ट ने नहीं माना।
उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड में नियमावलियों को अंगीकार कर लिया गया है। वहीं, कुछ में कट-पेस्ट कर उसे लागू कर दिया गया। पीसीएस अधिकारियों की सेवा नियमावली को लेकर यही कट-पेस्ट भारी पड़ गया। जब सेवा नियमावली अंग्रेजी व हिंदी में तैयार की गई थी। हिंदी वाली नियमावली में तदर्थ संबंधी शब्द छूट गए थे, जबकि अंग्रेजी में तैयार की गई नियमावली में तदर्थ पदोन्नति पर स्थिति साफ की गई थी। हालांकि, जब यह मामला कोर्ट में पहुंचा तो कोर्ट ने कहा कि हिंदी राजभाषा है, लिहाजा इसी को अनुरूप कार्रवाई की जाएगी। इस बीच राज्य सरकार ने हिंदी की नियमावली की खामी को दूर कर दिया। यही कारण है कि सीधी भर्ती वाले पीसीएस अधिकारी अब सुप्रीम कोर्ट से न्याय प्राप्त करने में सफल हो गए।
नजीर बनेगा सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सभी विभागों व सेवाओं के लिए नजीर साबित होगा। क्योंकि प्रदेश में ही बड़े स्तर पर तदर्थ पदोन्नति व सीधी भर्ती की वरिष्ठ को लेकर कई तरह की विसंगतियां हैं। अब शासन के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के आधार पर आसानी से वरिष्ठ से विवाद सुलझा सकते हैं।