जो अफसर जनता की नहीं सुनेंगे वो उत्तराखण्ड से बाहर जाएः मंत्री महाराज

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देहरादून। संवाददाता। शुक्रवार को पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने जनता दरबार में दस्तक दी। उन्होंने जन समस्याओं को गंभीरता से सुना ही नहीं, उनका शीघ्र निस्तारण भी किया। उन्होंने अपने सहायक को मामलें की जांच कर समाधान के निर्देश भी दिए। महाराज ने कहा कि जो अफसर जन समस्याओं को नहीं सुनेगा वो उत्तराखण्ड से बाहर चले जाएं।

जनता दरबार में सतपाल महाराज का टर्न था, अध्यात्मिक छवि रखने वाले मंत्री ने जब एक-एक कर समस्याएं सुनी, तो प्रशासनिक अम्लें की हकीकत कुछ इस तरह सामने आइ कि,  महाराज का गुस्सा प्रशासनिक अधिकारियों पर फूट पड़ा। मीडिया को ब्रिफ करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार अपना काम कर रही है, जो अफसर जनहित में सहयोग नहीं करेगा, उसके लिए उत्तराखण्ड में कोई जगह नहीं है। ऐसे अफसरों का बाहर चले जाना ही उचित होगा।। कुछ पेचीदा मामलों में महाराज काफी गंभीर हो गए। ऐसे ही कुछ मामलों में उत्तराखण्ड रिपोर्ट, पाठकों को सीधा जनता दरबार से अवगत कराने जा रहा है।
जरा एक नजर इन मामलों पर……………………………….

 

केस-1      आंख से अंधी बेटी मगर लग्न सिर्फ कामयाब होने की
भगत सिंह कालोनी निवासी इज्जुद्दीन जन्म से अंधे हैं। उन्होंने मंत्री को बताया कि मेरी तीन बेटियां हैं और एक बेटा है। ठीक से देख भी नहीं सकता हूं, यही हाल मेरे बच्चों का भी है। ये समस्या परिवार के साथ अनुवांशिकी है। काम के तौर पर कबाड़ बिनता हूं। चंद रूपयें कमा लू तो दो वक्त, रोटी की जुगत कर पाता हूं। उन्होंने मंत्री से आर्थिक मदद की मांग की है। जिस पर मंत्री ने अपने सहायक से उनका प्रार्थना पत्र स्वयं लिखने को कहा और उन्हें शीघ्र मदद करने का लिखित में आदेश किया।
उत्तराखण्ड रिपोर्ट के संवाददाता से खास बातचीत में इज्जुद्दीन ने बताया कि बड़ी बेटी फरीन पढ़ाई में बहुत ही होनहार है। वो दिल्ली मरांडा हाउस से बीए आनर्स की पढ़ाई कर रही है। उसे लैपटाॅप की बहुत जरूरत हैं, यदि मंत्री जल्द आर्थिक मदद दिला देंगे तो बेटी अपने सपने को साकार कर सकेगी। बता दे कि फरीन भी आंखों से नाममात्र ही देख सकती है। मगर बेटी की लग्न को देखते हुए पिता कैसे भी उसको पूरा सहयोग करने का हरसंभव प्रयास करते दिख रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है, जब पूरी सिद्त से किसी चीज को पाने का प्रयास किया जाता है, तो पूरी कायनात हमें मंजिल से मिलाने में जुट जाती है। मंत्री के सहयोग और लिखित आदेश उक्त पंक्ति का जीवंत नमुना है।

 

केस-2      पूर्व सैनिक की जमीन पर निगम का कब्जा, मंत्री ने दिए जांच के निर्देश

पूर्व सैनिक की जमीन पर निगम ने अवैध कब्जा कर लिया है। जिसकों लेकर वो मंत्री के पास मदद के लिए पहुंचे। उन्होंने कहा कि कई सालों से विभाग और अफसरों के चक्कर लगा रहा हूं। मगर कही से भी कोई सुनने वाला नहीं दिख रहा है। हर तरफ से सिर्फ आश्वासन और इंतजार मिल रहा है। आखिर मेरी जमीन का मालिकाना हक मुझे कब मिलेगा। लाचार ब्रिजमोहन के इतना कहते ही मंत्री ने उनकी जिम्मेंदारी खुद लेते हुए निजी सहायक को उनकी जमीन का हाल जानने को कहा। साथ ही शीघ्र मामलें का निस्तारण करने के लिए लिखित आदेश कर डाले। जिसके बाद ब्रिजमोहन ने कुछ हद तक चैन की संास जरूर ली।

केस-3      महासू देवता मंदिर के लिए 12 किमी सड़क बनाने के आदेश

पौराणिक महासू देवता मंदिर के लिए सड़क निर्माण कई सालों से नहीं हो पाया है। इसी वजह से पंडित रोज 12 किमी पैदल जाकर मंदिर में पूर्जा अर्चना करता है। साथ ही क्षेत्रिय लोगों को भी व्रत आदि के दिनों के दौरान पूजा पाठ करने में कठिनाई होती है। मामले में वन विभाग का हस्तक्षेप होने के चलते अब इस मामलें को राज्यपाल के सचिव तक मंत्री द्वारा पहुंचाया जा चुका है। वन विभाग की अनुमति मिलते ही सड़का निर्माण हो सकेगा। कागजों पर मंत्री के आदेश पढ़कर फरयादी सूरवीर चैहान महासू देवता का जयकारा लगाते हुए, प्रसन्न मुद्रा में वहां से जौनसार के लिए रवाना हो गए।

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