देहरादून। संवाददाता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक तरफ जहां आये दिन देश को डिजिटल इंडिया बनाने की बात करते है। वहीं उनके इन दावों की पोल उत्तराखण्ड पुलिस महकमा खोलता हुआ दिखायी दे रहा है लगता है जैसे उन्हे डिजीटल के मायने ही नहीं पता? बीते रोज वाहन चालक द्वारा मोबाइल पर गाड़ी के कागजात दिखाने के बावजूद सीपीयू ने उसे मान्य नहीं होने की बात कहकर गाड़ी सीज कर दी और भुगतान के नाम पर आठ सौ रूपये झटक लिये।
विदित हो कि अगस्त 2018 में सड़क एंव परिवहन मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों को जारी किये गये निर्देश में कहा गया था कि कोई भी व्यक्ति अपने डिजी लाकर या एम परिवहन प्लेटफार्म के माध्यम से अपने वाहन के कागजात अपने मोबाइल पर सेफ कर सकता है जो कहीं भी जरूरत पड़ने पर मान्य होगें। जिसके बाद उत्तराखण्ड पुलिस मुख्यालय द्वारा भी इस सूचना की पुष्टि करते हुए मीडिया को यह खबर जारी कर दी गयी थी। सोचनीय सवाल है कि इस सबके बावजूद मित्र पुलिस के कर्मचारियों को इन सबकी आधी अधुरी जानकारी है। लोगों का मानना है कि सीपीयू को स्काटलैंड यार्ड की तरह डै्रस तो पहना दी गयी है लेकिन उन्हे सड़क व परिवहन मंत्रालय द्वारा जारी किये गये रूल्स की जानकारी ही नहीं है।
सड़क एंव परिवहन मंत्रालय द्वारा अगस्त 2018 में जारी किये गये इन निर्देशों को उत्तराखण्ड पुलिस महकमा कितनी मान्यता दे रहा है इसका पता बीते रोज एक गाड़ी सीज करने के दौरान चला जब वाहन चालक ने मोबाइल पर वाहन के कागजात दिखाने की कोशिश की तो उसे सीपीयू द्वारा मान्य नहीं होने की बात कही गयी और दूसरे दिन सीज वाहन को छोड़ने नाम पर सभी कागजात दिखाने के बावजूद दंड स्वरूप आठ सौ रूपये का चालान काट दिया। सोचनीय सवाल यह है कि केन्द्र सरकार द्वारा डिजी लाकर व एम परिवहन के प्लेटफार्म से मोबाइल पर कागजात रखने के निर्देश को मित्र पुलिस क्यों नहीं मान्यता दे रही है। क्या इसी तरह से देश को डिजीटल इंडिया बनाया जा सकता है।