देहरादून। संवाददाता। देवभूमि उत्तराखंड को सैनिकों का प्रदेश भी कहा जाता है. माना जाता है कि राज्य के हर घर से औसत एक आदमी सेना में है. हाल ही में चार दिन में राज्य के चार जवानों की मौत हुई है और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए लगने वाली भीड़ ने बता दिया है कि इस राज्य में देश के लिए शहीद होने वालों के लिए कितना सम्मान और प्यार है. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है राज्य के जवान देश के लिए शहीद हुए हैं 1962 के युद्ध से अब तक उत्तराखंड के करीब 2285 जवान देश के लिए शहीद हुए हैं।
मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल, मेजर चित्रेश बिष्ट और सीआरपीएफ के जवान मोहनलाल रतूड़ी, वीरेंद्र राणा की जम्मू कश्मीर में शहादत से पूरा प्रदेश हिल गया है. एक बार फिर देश को यह याद आया है कि इस छोटे से पहाड़ी प्रदेश ने देश की रक्षा के लिए हमेशा बढ़-चढ़ कर कदम बढ़ाए हैं. आजादी से पहले की बात हो या आजादी के बाद की… देवभूमि के सपूतों ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह कभी नहीं की।
प्रथम विश्वयुद्ध हो या द्वितीय विश्व युद्ध इस राज्य के बीरों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था. उत्तराखंड के सपूतों की वीरता से प्रभावित हो कर अंग्रेजों ने इस राज्य के वीरों को अनेक मेडल से नवाजा. लेप्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) ओपी कौशिक कहते हैं कि उत्तराखंड के अलावा ऐसा कोई भी प्रदेश नहीं है जिसने हर जंग में हिस्सा लिया हो।
आजादी से पहले उत्तराखंड के सपूतों को असामान्य सपूतों ने 3 विक्टोरिया क्रॉस, 53 इंडियन ऑडर ऑफ मेरिट, 25 मिलिट्री क्रॉस, 89 आईडी एसएम और 44 मिलिट्री मेडल हासिल किए थे।
1962 में हुए भारत-चीन युद्ध, 1965 में पाकिस्तान से युद्ध, 1971 में भारत-पाक युद्ध में उत्तराखंड के जवानों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा है. सिर्फ 1971 के युद्ध में उत्तराखंड के सबसे ज्यादा करीब 250 जवान शहीद हुए थे. देश के लिए इन युद्धों में अदम्य साहस का परिचय देने के लिए उत्तराखंड को अभी तक 6 परमवीर और अशोक चक्र, 29 महावीर चक्र, 3 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 100 वीर चक्र, 169 शौर्य चक्र, 28 युद्ध सेवा मेडल, 745 सेनानायक, 168 मेंशन इन डिस्पैचिस जैसे मेडल हासिल हुए हैं।