देहरादून। संवाददाता। सड़कें-नालियां, बिजली के सड़े-गले खंभे, पानी की पुरानी बदहाल लाइनें आम आदमी का जीना मुहाल किए हैं। इन छोटी-छोटी दिक्कतों से परेशानहाल लोग जिलाधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार में गुहार लगा रहे हैं। वहीं बुनियादी सुविधाओं के लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली करोड़ों रुपये की धनराशि को पंचायतें, निकाय और उनसे जुड़े महकमे कहीं और ही ठिकाने लगा रहे हैं।
इस धनराशि का इस्तेमाल विकास कार्यों के लिए नहीं हो रहा है अथवा हो रहा है तो महज खानापूरी के तौर पर। चिंताजनक ये है कि गंभीर वित्तीय अनियमितता के इस मामले में जिलाधिकारी दफ्तरों की भूमिका भी पाक-साफ नहीं है। 499.82 करोड़ से ज्यादा धनराशि का इस्तेमाल कहां और कैसे हुआ, इसकी जानकारी सरकार को नहीं मिल पाई है। उक्त धनराशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं मिलने से इसमें बड़े घपले का अंदेशा जताया जा रहा है।
प्रदेश में विकास कार्यों की धनराशि का उपयोग धरातल पर दिखाई नहीं दे रहा है। जिम्मेदार सरकारी महकमे, पंचायतें और निकाय विकास कार्यों के लिए मिलने वाली धनराशि को मनमाने तरीके से ठिकाने लगा रही हैं। 14वें वित्त आयोग और राज्य वित्त आयोग की ओर से पंचायतों और शहरी निकायों को पिछले कई वर्षों से दी जा रही धनराशि के खर्च का ब्योरा सरकार को नहीं मिल पाया है।
इससे केंद्र सरकार और महालेखाकार (लेखा व हकदारी) को भी उपयोगिता प्रमाणपत्र उपलब्ध कराना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। सरकार ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए संबंधित प्रमुख सचिवों व सचिवों को उपयोगिता प्रमाणपत्र मुहैया कराने के आदेश दिए हैं।