देहरादून। समाजवादी पार्टी इस आमचुनाव में उत्तराखंड की किसी भी सीट से चुनाव नहीं लड़ रही है। राज्य गठन के बाद यह पहली बार है जब समाजवादी पार्टी प्रदेश में लोकसभा चुनावों में शिरकत नहीं कर रही है।
गौरतलब है कि प्रदेश में कांग्रेस व भाजपा के अलावा केवल सपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसने राज्य गठन के बाद प्रदेश की किसी लोकसभा सीट पर कब्जा जमाया। सपा ने वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में हरिद्वार संसदीय सीट पर जीत दर्ज की थी।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए सपा-बसपा ने उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर भी गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया था। हालांकि, यहां बसपा ने अपने पुराने प्रदर्शन और वोट बैंक का हवाला देते हुए चार सीटों पर खुद दावा ठोका और एक पौड़ी संसदीय सीट सपा को दी। यह सीट ऐसी थी जहां सपा का कोई जनाधार था ही नहीं।
दरअसल, देखा जाए तो हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर, ही दो ऐसे जिले हैं जहां दोनों ही दलों का जनाधार है। इन दोनों ही जिलों का राजनैतिक परिवेश और जातीय गणित काफी कुछ उत्तर प्रदेश की राजनीति से मेल खाता है। इन दो जिलों में विधानसभा की कुल 20 सीटें आती हैं।
ऊधमसिंह नगर नैनीताल सीट के अंतर्गत है जबकि हरिद्वार अलग लोकसभा सीट है। तकरीबन एक समान जनाधार होने के बावजूद बसपा ने इन दोनों ही लोकसभा सीटों को अपने पास रखा।
देखा जाए तो राज्य गठन से पहले सपा का उत्तराखंड में ठीकठाक जनाधार रहा है। वर्ष 1996 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा ने वर्तमान उत्तराखंड के भौगोलिक क्षेत्र में आने वाली 22 सीटों पर चुनाव लड़ा और तीन पर जीत हासिल की।
महत्वपूर्ण यह कि सपा को यह सफलता तब मिली, जब वर्ष 1994 के राज्य आंदोलन के चरम के दौरान सपा की छवि उत्तराखंड में खलनायक सरीखी बन गई थी। हालांकि, इसके बाद वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में सपा ने राज्य विधानसभा की 70 में से 63 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, मगर जीत एक भी सीट पर नहीं मिली। सपा के हिस्से कुल 6.27 प्रतिशत मत आए।
इसके बाद वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए राज्य की पांच में से एक, हरिद्वार लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की। यह उत्तराखंड में सपा की अब तक की एकमात्र चुनावी जीत है।
इसके बाद वर्ष 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में सपा खाली हाथ रही और उसका मत प्रतिशत भी गिरकर 4.96 तक पहुंच गया। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को केवल 1.45 प्रतिशत मत मिले। वर्ष 2017 में संपन्न राज्य विधानसभा के चैथे चुनाव में पार्टी का मत प्रतिशत महज 0.4 तक सिमट गया।
संभवतया यही कारण भी रहा कि बसपा ने गठबंधन कोटे से सपा को एक सीट दी लेकिन स्थिति यह बनी कि सपा को यहां एक अदद प्रत्याशी भी चुनाव लडने को नहीं मिल पाया। इससे अब सपा चुनावी मैदान से पूरी तरह बाहर हो गई है और उसकी भूमिका बाकी चार संसदीय सीटों पर बसपा के साथ केवल गठबंधन धर्म निभाने की रह गई है।