देहरादून। संवाददाता। शहर की व्यस्तम सड़क पर करोड़ों की लूट, आरोपी पुलिसकर्मी, लूट में पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय के वाहन का इस्तेमाल, लुटेरे पुलिस कर्मी सीसी कैमरे में कैद। फिर भी पुलिस महकमा मामले की कर रहा है जांच?
यह कोई फिल्मी दृश्य नहीं है। यह सब इन दिनों उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में चल रहा है। जहंा इस करोड़ों की लूट के मामले को दस दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस जांच का दावा कर रही है। जबकि लूट के आरोपित पुलिसकर्मी दून पुलिस लाइन से फरार हो चुके है। सवाल यह है कि क्या आम अपराधी अगर इस तरह से लूट की इस वारदात को अंजाम देते तो क्या फिर भी पुलिस महकमा इस मामले में इतनी ढिलाई बरतता? सवाल है कि जब सीसी कैमरे में सारी तस्वीर साफ हो चुकी है तो फिर पुलिस महकमा किसे बचाने के लिए प्रयासरत है।
जांच के नाटक के नाम पर दस दिन बीत चुके है। पहले तो पुलिस विभाग ने उक्त लुटेरे पुलिस कर्मियों का निलम्बन कर उन्हे पुलिस लाइन में जांच होने तक निगरानी में होने की बात कही। बीते रोज जब यह बात सामने आयी कि उक्त पुलिस कर्मी पुलिस लाइन से भी फरार हो गये तो पुलिस महकमा अब मामले में चुप्पी साधे बैठा है। जबकि इस लूट कांड का मुख्य साजिश कर्ता पहले ही पुलिस पकड़ से कोसों दूर हो चुका है। आखिर इस मामले में इतने सबूत होने के बाद पुलिस किसको बचाने के लिए इतने खेल खेल रही है जबकि इतने बड़े कांड में आईजी कार्यालय की गाड़ी का इस्तेमाल हुआ है?