देहरादून। संवाददाता। करोड़ों की मरीन बोट टिहरी झील में डूब गयी जिसे लेकर अब शासनकृप्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। पर्यटन मंत्री टिहरी झील में पनडुब्बी उतारने और पर्यटकों को जल मग्न हुई पुरानी टिहरी के दर्शन कराने की बातें करते है। सवाल यह है कि जो शासनकृप्रशासन एक वोट को संभाल नहीं सका वह पनडुब्बी को कैसे संभाल पायेगा, गनीमत रही कि इस बोट में कोई सवार नहीं था वरना तो उसे डूब कर मर ही जाना था।
नया राज्य बने 18 साल हो चुके है। जो भी सत्ता में रहा वह राज्य की कम आय का रोना रोता रहा। पर्यटन कमाई की जगह घाटे का सौदा साबित हो रहा है। लेकिन सत्ता में बैठे लोग यह सोचने को तैयार नहीं है कि उनकी गलत नीतियों व तुगलकी निर्णयों के कारण ही ऐसा हो रहा है। मैरीन बोट का डूबना तो बस एक उदाहरण भर है। राजधानी दून में सौ करोड़ की लागत से बनाई गयी आईस स्केटिंग रिंक जिसका दो कौड़ी का भी इस्तेमाल नहीं हो सका। ओली में आइस स्केटिंग के लिए आयात की गयी करोड़ों की बर्फ बनाने वाली मशीन, जिससे एक टन भी बर्फ नहीं बन सकी जो आज जंग खा रही है। एक नहीं ऐसे अनेक उदाहरण है जो सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते है। सूबे के पर्यटन मंत्री और सरकार कागजी और जुबानी घोड़े दौड़ाने में ही हमेशा अव्वल रहे है। वह टिहरी में पनडुब्बी भी उतार सकते है और राज्य की नदियों में सी प्लेन भी उड़ा सकते है। हर जिले में एक टूरिस्ट डेस्टीनेशन भी विकसित कर सकते है और दून से मसूरी आपको पलक झपकते ही रोपवे से पहुंचा सकते है। दरअसल जुबानी जमा खर्च में कुछ खर्च नहीं होना है।
खास बात यह है कि पर्यटन विभाग और सरकार ने यह गलत फहमी पाल रखी है कि वह ही सूबे के पर्यटन को चला रहे हैै। लेकिन सच्चायी यह है कि सूबे का पर्यटन चारधामों में लोक आस्था और निजी क्षेत्र के सहयोग के कारण ही चल रहा है। सरकार व पर्यटन मंत्रालय तो इसके विकास नहीं इसमें पलीता लगाने का काम ज्यादा करते रहे है। सूबे में बोट राईडिंग व वंजी जम्पिग जैसे साहसिक पर्यटन को निजी क्षेत्रों ने जिंदा रखा हुआ है। सरकार तो इन्हे बंद कराने का प्रयास ही करती रही है। गंगा किनारे टैंट कालोनी को उजाड़ने व रिबर राफ्टिंग जैसे साहसिक पर्यटन को बंद कराने के अब तक कई प्रयास किये जा चुके है।असल में पर्यटन विकास के नाम पर यह खिलवाड़ अनुभव हीनता के कारण है। सरकार को चाहिए कि वह कोस्टल एरिया की तर्ज पर पोर्ट कमांडर की नियुक्ति करे। वाटर स्पोर्टस के लिए अलग विभाग हो। तभी सहासिक खेल व पर्यटन का विकास संभव है।