देहरादून। संवाददाता। उत्तराखण्ड के जंगल धूं धूं करके जल रहे है, लोग डरे व सहमे हुए है जगंल की आग की लपटे आवासीय क्षेत्रों तक पहुंच चुकी है। करोड़ों की वन सम्पदा अब तक जल कर खाक हो चुकी है। लेकिन सूबे का वन महकमा अब तक हाथ पर हाथ रखे बैठा है।
यूं तो हर साल गर्मियों का सीजन शुरू होते ही उत्तराखण्ड के जंगल सुलगने लगते है। लेकिन इस साल जगंलों क आग ने कुछ ज्यादा ही तांडव मचा रखा है। राज्य का कोई भी वन प्रभाग आग से अछूता नहीं बचा है सूबे में अब तक 491 घटनाएं सरकारी आंकड़ों के हिसाब से सामने आ चुकी है। जिसमें 103 सिविल क्षेत्रों की है इस वनाग्नि से अब तक 676 हेक्टेयर जगंल जलने की बात कही जा रही है। सरकारी आंकलन के हिसाब से भले ही इन आग की घटनाओं से किये गये नुकसान का आंकलन 11 लाख ही रहा हो लेकिन एक अनुमान के अनुसार यह करोड़ो में है। जगंल की इस आग से पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा है वह तो अलग बात है लेकिन इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव वन्य जीवों पर पड़ रहा है।
बात चाहे चमोली वन प्रभाग की हो या फिर रामनगर की, अल्मोड़ा की हो या पिथौरागढ़ की। इन दिनों पूरे राज्य में वनाग्नि ने भयंकर तांडव मचा रखा है। अल्मोड़ा में तो यह वनाग्नि वन संरक्षक कार्यालय तक जा पहुंची है। टिहरी जिले के घनसाली के जंगलों में इन दिनों भीषण आग लगी हुई है। यह आग अब ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच चुकी है। तथा एक दो घरों को भी अपनी चपेट में ले चुकी है। रामनगर के जौलासाल के जंगलों में भी इन दिनों भीषण आग लगी हुई है। हरिद्वार व ऋषिकेश के जंगल भी इस आग से अछूते नहीं है।
सरकार द्वारा इन वनाग्नि से निपटने के लिए 12 करोड़ का बजट जारी किया गया था तथा वनों में आग लगने की सूचना देने वालों को 5000 की घोषणा भी की है। लेकिन यह बजट कहां गया इसका क्या उपयोग किया गया इसका कोई जवाब अधिकारियों के पास नहीं है। वन विभाग के अधिकारी मैन पावर व संसाधनों की कमी का रोना रो रहे है और जंगल जल रहे है। हर बार की तरह उन्हे आसमान से होने वाली बारिश का ही इंतजार है जो इस आग को बुझा सकती है।