देहरादून। संवाददाता। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35ए चुपके से लागू हुआ। संसद में इस पर चर्चा तो दूर जिक्र तक नहीं किया गया। यही कारण है कि आज यह अनुच्छेद पूरी व्यवस्था के लिए सिरदर्द बन गया है। इसके समाधान के रास्ते तलाशे जाने चाहिए। जिससे भारत में एक जैसा संविधान लागू हो कसे।
श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय और जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में एसजीआरआर पीजी कॉलेज में संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी में जम्मू-कश्मीरः तथ्य, समस्या और समाधान विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे। इस मौके पर मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप दुबे ने अनुच्छेद 370 और 35ए पर महत्वपूर्ण जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि अक्टूबर 1949 को धारा 370 जम्मू-कश्मीर में लागू की गई। इस पर कोई चर्चा नहीं हुई। यह संविधान सभा द्वारा जम्मू-कश्मीर में उस समय की समस्याओं के कारण लाया गया। उस दौरान जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान का कुछ कब्जा था, जिसके लिए यह जरूरी था। धीरे-धीरे परिस्थितिया सामान्य होने पर पूरे संविधान को लागू करने की बात कही गई। मगर, यह आज तक पूरा नहीं हो पाया। यह अनुच्छेद 1954 में राष्ट्रपति के आदेश पर लाया गया, जिसे संसद में कभी नहीं रखा गया। इसकी संसद को जानकारी भी नहीं हुई। उन्होंने अनुच्छेद के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
उन्होंने अफसोस जताया कि पाक से आए कई नागरिक देश के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो गए हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीर में रहने वाले कई लोग आज भी वोट नहीं दे सकते हैं। क्षेत्रीय बौद्धिक प्रमुख सुशील कुमार ने कहा कि हमारी व्यवस्था हमेशा समाज केंद्रित रही है। सत्ता केंद्रित व्यवस्था से हमेशा नुकसान हुआ है।
इस मौके पर अध्ययन केंद्र दिल्ली के अजय मित्तल, निधि बहुगुणा, वैभव कुलाश्री, बलदेव पाराशर, डॉ. एके सक्सेना, सुनील केस्टवाल, डॉ. दिनेश उपमन्यु आदि मौजूद रहे।