देहरादून। संवाददाता। जहरीली हवा के धुंध में घिरा क्या यह वही दून है, जो कभी रिटायर्ड लोगों का शहर माना जाता था। यकीन नहीं होता कि यहां की जिस स्वच्छ आबोहवा में लोग रिटायरमेंट के बाद जिंदगी की दूसरी पारी को नई गति देते थे, वहां की सांसें आज उखड़ने लगी हैं। जो शहर कभी स्वच्छ आबोहवा के लिए जाना जाता था, उसकी गिनती आज देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में होने लगी है।
शहरीकरण की अंधी दौड़ में हमारा शहर दून भी वायु प्रदूषण के मामले देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों जमात में शामिल हो गया और अब भी हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों को हम हमेशा नजरंदाज करते रहे। तब भी हमारे कानों में जूं तक नहीं रेंगी, जब दो साल पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वह रिपोर्ट संसद में रखी गई।
इसमें दून में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर)-10 की मात्रा मानक से चार गुना 241 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (वार्षिक औसत) पाई गई है, जबकि यह 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
हमारे वैज्ञानिक बार-बार कह चुके हैं कि दूनघाटी का आकार कटोरेनुमा है और यहां फैलने वाला वायु प्रदूषण आसानी से बाहर निकलने की जगह हमारे फेफड़ों को संक्रमित करता रहता है। सरकार व शासन के स्तर पर भी इतने अहम मसले पर कोई कार्रवाई न करने की प्रवृत्ति के चलते पर्यावरण संरक्षण व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका भी आंकड़े एकत्रित करने तक सीमित रह गई है।
दून के जिस संभागीय परिवहन कार्यालय में हर साल करीब 54 हजार नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं, वह भी यह जानने की कोशिश नहीं कर रहा कि शहर में कितने वाहन मानक से अधिक धुआं छोड़ रहे हैं।