देहरादून। संवाददाता। राज्य में परंपरागत कृषि विकास योजना पर अधिकारियों की कार्यशैली से पलीता लग रहा है। ताजा मामला करोड़ों रुपये के जैव उर्वरक, जैविक रसायन और उपकरणों से जुड़ा है। किसानों को इसकी किट तीन माह पहले ही बांट दी गई, मगर प्रशिक्षण न देने से किट का किसानों द्वारा या तो दुरुपयोग किया जा रहा है या घरों में शो-पीस बन गई है। इससे चिंतित प्रगतिशील किसानों का कहना है कि खरीफ की फसल की बुआई अंतिम दौर में चल रही है। ऐसे में कब प्रशिक्षण होगा और कब किट का उपयोग किया जाएगा।
किसानों की आय दोगुना करने के मिशन के तहत केंद्र सरकार ने पिछले साल राज्य को परंपरागत कृषि विकास योजना को स्वीकृति दी थी। इस योजना के तहत परंपरागत किसानों के 39 सौ कलस्टर बनाए जा चुके हैं। हर कलस्टर में 50 किसान जोड़े गए हैं। प्रत्येक कलस्टर को एक साल में छह लाख रुपये बीज, खाद, दवा और प्रशिक्षण के लिए दिए जाने हैं।
कृषि निदेशालय का कहना है कि पहली किश्त के रूप में 131 करोड़ स्वीकृति हुए थे। इसमें 65 करोड़ से विभिन्न कंपनियों के मार्फत निविदा से किट की खरीदारी हुई है। किट सभी कलस्टर में बांटी जा चुकी हैं। मगर, प्रशिक्षण देने वाली संस्था का शेड्यूल अभी तय नहीं हुआ है। खरीफ की फसल की बुआई को महज एक माह शेष है। ऐसे में कब प्रशिक्षण दिया जाएगा और कब फसल तैयार की जाएगी, इसे लेकर किसान चिंतित हैं। किसानों को आशंका है कि कहीं सिर्फ बजट ठिकाने लगाने के लिए किसानों की आड़ तो नहीं ली जा रही है।