देहरादून। संवाददाता। सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाली भाजपा की सरकार भले ही बेरोजगारी से लड़ने की अनेक योजनाएं चला रही हो और नये नये कानून बना रही हो लेकिन वर्तमान दौर में एक अनपढ़ व्यक्ति को नान ट्रांसपोर्टस व्हीकल चलाने के लिए एक अदद लर्निंग लाइसेंस भी मिल पाना संभव नहीं है।
सरकार के नये व्हीकल एक्ट के तहत अब ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया को पूरी तरह से बदल दिया गया है। किसी व्यक्ति को अब इसके लिए व्यक्तिगत तौर पर परिवहन कार्यालय में उपस्थित होकर न सिर्पफ अपना आईडी प्रुफ देना होता है बल्कि आई वीजन टेस्ट तथा अंगूठा निशानी, ब्लड ग्रुप आदि की जानकारी देनी होती है वहीं यातायात नियमों की जानकारी से सम्बन्धित टेस्ट भी देना होता है और वाहन चलाकर भी दिखाना होता है। खास बात यह है कि कि यह टेस्ट कम्प्यूटर द्वारा लिया जाता है।
भले ही सरकार द्वारा अनपढ़ लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने की व्यवस्था नये एक्ट में की गयी है लेकिन सवाल यह है कि जब किसी अनपढ़ को टेस्ट देने के लिए कम्प्यूटर पर बिठा दिया जायेगा तो वह कैसे उस टेस्ट में पास हो सकता है। ऐसी स्थिति में आरटीओ कर्मचारियों द्वारा अनपढ़ लोगों को यह कहकर लौटा दिया जाता है कि वह अयोग्य है इसलिए उनका लाइसेंस नहीं बन सकता है। तब फिर सरकार को ऐसे तुगलकी निर्णय लेने का क्या फायदा है? जिनसे आम आदमी का कोई भला नहीं हो सकता।
भले ही केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी देश में करोड़ो फर्जी लाइसेंसों का हवाला देकर कानूनों में बदलाव जरूरी बता रहे हो लेकिन फिर अनपढ़ों को भी लाइसेंस देने का तुर्रा क्यों? ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में करोड़ो लोग अनपढ़ होने के बाद भी पहले रोजी रोटी तो कमा सकते थे लेकिन अब उनके लिए भी रोजगार के द्वार बंद हो गये है। इसके खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में दायर याचिका में इसे चुनौती दी गयी है तथा अपील की गयी है कि परिवहन कार्यालयों में होने वाले कम्प्यूटर टेस्ट में अनपढ़ लोगों की सहायता के लिए उन्हे सहायक उपलब्ध कराने की व्यवस्था करायी जानी चाहिए या फिर उनका मौखिक टेस्ट लिया जाना चाहिए जिससे अनपढ़ लोगों को भी ड्राईविंग का लाइसेंस मिल सके।