देहरादून। संवाददाता। सूबे में डेंगू इन दिनों अपने चरम पर है। दर्जनों नये मामले हर रोज सामने आ रहे है। सरकारी और निजी अस्पतालों में डेंगू से पीड़ितों की भारी तादात से डाक्टरों और स्वास्थ्य महकमें के अधिकारियों के हाथ पैर फूल गये है और उन्हे यह समझ नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें? वहीं इलाज के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में भटक रहे मरीज और उनके परिजनों मेें उचित इलाज न मिल पाने के कारण भारी आक्रोश देखा जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि डेंगू के प्रकोप से उत्तराखण्ड को कौन बचायेगा।
डेंगू से निपटने का दावा करने वाला स्वास्थ्य महकमा डेंगू के प्रकोप के आगे पूरी तरह फेल हो चुका है। भले ही सरकारी आंकड़ों में अभी राज्य में डेंगू से पीड़ित मरीजों की संख्या 13 सौ के आस पास बतायी जा रही हो तथा डेंगू से होने वाली मौतों पर चुप्पी साधी जा रही हो लेकिन एक अनुमान के अनुसार राज्य में दस हजार से भी अधिक लोग डेंगू की चपेट में आ चुके है। खास बात यह है कि स्वास्थ्य महकमें के पास डेंगू पीड़ितों का सही आंकड़ा नहीं है। राजधानी दून की बात की जाये तो दून को कोई भी सरकारी और निजी अस्पताल ऐसा नहीं है जहंा सैकड़ों की तादात में डेंगू पीड़ित मरीज न पहुंच रहे हो। हालात इतने खराब हो चुके है कि इन अस्पतालों में अब डेंगू पीड़ितों को भर्ती करने की जगह भी नहीं बची है, तमाम अस्पताल फुल हो चुके है।
इलाज तो बाद की बात है बैड ने मिलने के कारण डेंगू पीड़ितों के परिजन मरीजों को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काटने पर विवश है। अभी बीते दिनों बैड न मिलने व इलाज न मिलने पर नेहरूग्राम निवासी एक 37 वर्षीय युवक की मौत हो गयी थी। अकेले दून में अब तक डेंगू से आठ लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इन मौतों को लेेेेकर भी कुछ कहने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि वह जांच के बाद ही पुष्टि कर पायेंगे। कि मौत डेंगू से हुई है या फिर किसी अन्य कारण से। डेंगू की रोकथाम के नाम पर सिर्पफ औपचारिकताएं ही पूरी की जा रही है। दून अस्पताल चिकित्सा अधिकारी के.के. टम्टा का साफ कहना है कि स्टाफ और तकनीशियनों की कमी के कारण स्थिति को संभाल पाना मुश्किल हो रहा है।