देहरादून। संवाददाता। प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के तमाम दावे खोखले साबित हो रहे हैं। भले ही स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर प्रदेश में बड़ी संख्या में अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की गई हो, लेकिन चिकित्सक और आवश्यक सेवाओं के अभाव में ये स्वास्थ्य केंद्र दिखावेभर के हैं।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पहाड़ के अस्पताल रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। दुरूह पर्वतीय क्षेत्रों से मरीज सामान्य स्थिति में भी मैदानी क्षेत्रों की तरफ ठेल रहे हैं। पर समस्या ये कि यहां सरकारी व निजी अस्पतालों की बहुलता के बीच भी मरीज को वक्त पर उपचार नहीं मिल पा रहा है। ऐसा ही एक मामला चमोली के लंगासु गांव निवासी गर्भवती का है। जिसे एक अस्पताल से लेकर दूसरे अस्पताल तक भटकते रहे।। कहा गया कि मामला क्रिटिकल है और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी, पर वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है। ताज्जुब ये कि महिला की सामान्य डिलीवरी हुई है।
चमोली के लंगासु गांव निवासी लखपत असवाल की पत्नी लक्ष्मी देवी को गुरुवार को प्रसव पीड़ा हुई। पर आसपास कहीं उपचार नहीं मिला। जिस पर परिजन उन्हें श्रीनगर बेस अस्पताल पहुंचे, जहां से उन्हें गंभीर बताकर श्रीनगर मेडिकल कॉलेज और वहां से एम्स ऋषिकेश रेफर कर दिया गया। असवाल ने बताया कि चार घंटे के पहाड़ी सफर के बाद वह एम्स पहुंचे, लेकिन यहां पर वेंटिलेटर की व्यवस्था नहीं होने पर उन्हें भर्ती नहीं किया गया। यहां से वह जौलीग्रांट स्थित हिमालयन अस्पताल आए, पर वहां भी वेंटिलेटर नहीं होने की बात कहकर उन्हें भर्ती नहीं किया जा सका।
इसके बाद रात करीब 10 बजे वह दून के एक बड़े निजी अस्पताल पहुंचे। यहां पर एडवांस जमा करने के बाद ही इलाज शुरू करने की बात उनसे कही गई, लेकिन उनके पास इतना रुपये नहीं होने पर वह भर्ती नहीं कर सके। रात में कुछ लोगों के हस्तक्षेप पर प्राथमिक उपचार इस अस्पताल में मिला, लेकिन उन्होंने भी मामला गंभीर होने की बात कहकर मरीज को रेफर कर दिया।