देहरादून (संवाददाता) : लंबे अरसे से आंदोलनरत प्रधानों ने बुधवार को परेड ग्राउंड धरना स्थल पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। विरोध स्वरूप कई प्रधानों ने अपने सिर मुंडवाए। प्रधानों ने मंच पर सरकार के पुतले का शव रखकर नारेबाजी की। मांगें पूरी नहीं होने पर रोष जताया।
प्रधानों ने सरकार की शवयात्रा निकालने से पूर्व मंच पर सिर मुंडवाए। इस दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी मंच पर मौजूद रहे। रोष स्वरूप सबसे पहले प्रदेश प्रधान संगठन के अध्यक्ष गिरवीर परमार ने अपना सिर मुंडवाया। प्रदर्शन के दौरान रितेश जोशी, धीरज लाल शाह, धनवीर सिंह बिष्ट, प्रवीण चैहान, देवेन्द्र सिंह चौहान, सुमन लटवाल, मुस्कान, राजेंद्र नवानी, सोम प्रकाश, मनोज, हरि किशोर, रंजीत आदि मौजूद रहे।
प्रधानों और पुलिस के बीच धक्कामुक्की
मुंडन होते ही दोपहर एक बजे के करीब प्रधान सरकार के पुतले को अर्थी के रूप में सजाकर मंच से जैसे ही नीचे उतारने लगे, पुलिस ने पुतले को छीन लिया। इस दौरान पुलिस और प्रधानों के बीच धक्कामुक्की हो गई। पुलिस ने पुतले को कब्जे में ले लिया। प्रधान पुतले की शव यात्रा नहीं निकाल पाए। इस दौरान भड़के प्रधानों ने जमकर नारेबाजी की।
इधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को पत्र लिखकर ग्राम प्रधान संगठन की मांगों पर शीघ्र कार्यवाही और नगर निकायों के सीमा विस्तार में ग्राम प्रधानों को विश्वास में लेने की पैरवी की है।
पत्र में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने लिखा कि ग्राम प्रधान लंबे अरसे से आंदोलनरत है। प्रदेशभर के ग्राम प्रधान न्यायोचित मांगों को लेकर आठ दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं। ऐसे में पंचायत प्रतिनिधियों की सुध नहीं लेना गंभीर विषय है। उन्होंने 14वें वित्त आयोग एवं राज्य वित्त आयोग से ग्राम पंचायतों को पहले आवंटित धनराशि के स्वरूप में परिवर्तन नहीं करने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा हुआ तो पंचायतों में विकास कार्यो पर बुरा असर पड़ेगा। धनराशि आवंटन की पूर्व व्यवस्था को बहाल रखा जाना चाहिए।
प्रीतम सिंह ने कहा कि पंचायती राज अधिनियम विधानसभा से पारित हो चुका है, लेकिन इसे आज तक लागू नहीं किया गया। ग्राम प्रधान संगठन इस अधिनियम को लागू करने की मांग कर रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार ने प्रदेशभर के नगर निकायों के सीमा विस्तार का फैसला लिया है, लेकिन इसमें संबंधित क्षेत्र की जनता और पंचायत प्रतिनिधियों की राय को शामिल नहीं किया है। यह मसला पहले भी विधानसभा में उठ चुका है। सरकार ने भरोसा दिया था कि सीमा विस्तार में पंचायत प्रतिनिधियों को विश्वास में लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।