अगले सत्र में उत्तराखण्ड की संस्कृति धरोहर से दूर हो जाएंगे छात्र

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देहरादून। आशीष बडोला। अब स्कूली पाठ्य क्रम में उत्तराखण्ड के विद्यार्थियों को राज्य से जुड़ी जानकारी नहीं मिल पाएगी। ऐसा इसलिए बताया जा रहा है क्योंकि अगले सत्र 2018 से सूबें में एनसीईआरटी का सलेबस लागू होने जा रहा है। एक तरफ बच्चों को एक समान शिक्षा से जोड़ा जा रहा है। दूसरी ओर इसके नकारात्मक मायने भी सामने आ रहे हैं। पहले विद्यार्थियों को राज्य की बोली से संबंधी शब्दों के बारे में जानकारी दी जाती थी।

साथ ही कुछ पाठ ऐसे जोड़े गए थे, जिसमें उत्तराखण्ड की संस्कृति, मेले, तीज त्यौहारों की खास जानकारी दी गई थी। मगर एनसीईआरटी की किताबे लागू होने के बाद राज्य के नौनिहालों को इन जानकारियों से दूर कर दिया जाएगा। अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की निदेशक सीमा जौनसारी ने उत्तराखण्ड रिपोर्ट से फोन पर हुई बातचीत में बताया कि पहले के पाठ्यक्रम में लोकल जानकारियों को बताया गया था।

साथ ही लोकल बोली के कुछ खास शब्दों का अर्थ भी बच्चों को बताया जाता है। वहीं एक शोध में ये बात सामने आई है कि दुनियाभर में विलुप्ती की कगार में गढ़वाली और कुमंाऊनी बोली को भी शामिल किया गया है। जो उत्तराखण्ड के लोगों के लिए चिंता का विषय है। ऐसे में पाठ्यक्रम से राज्य से जुड़ी जानकारिया अलग होना और गंभीर विषय है। जिस पर सरकार को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।

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