82 वर्षीय पद्मश्री अवधेष कौशल समाज हित में हैं हटे हुए

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देहरादून। संवाददाता। जब भी दबे-कुचलों के हितों की बात आती है या जहां भी नागरिक हितों की अनदेखी का सवाल खड़ा होता है, वहां 82 वर्ष के वयोवृद्ध समाजसेवी पद्मश्री अवधेश कौशल डटकर खड़े हो जाते हैं। जन सरोकारों की जो लड़ाई उन्होंने बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए वर्ष 1972 में शुरू की थी, वह आज तमाम मुकाम हासिल कर अनवरत जारी है।

आज अगर देश में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम-1976 लागू है तो उसका श्रेय पद्मश्री अवधेश कौशल को ही जाता है। वर्ष 1972 में तमाम गांवों का भ्रमण करने के बाद जब अवधेश कौशल ने पाया कि बड़े पैमाने पर लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही है तो वह इसके खिलाफ खड़े हो गए। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की और बंधुआ मजदूरी का सर्वे करवाया। सरकारी आंकड़ों में ही 19 हजार बंधुआ मजदूर पाए गए। इसके बाद वर्ष 1974 मैच के अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को बंधुआ मजदूरी से ग्रसित गांवों का भ्रमण कराया। जब सरकार को स्थिति का पता चला तो वर्ष 1976 में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन एक्ट लागू किया गया।

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