देहरादून। उत्तराखंड में थैलेसीमिया (Thalassemia) के मरीजों के लिए एक राहत वाली खबर है। केंद्र सरकार से मिली जानकारी के मुताबिक देश की प्रमुख कोयला उत्पादन कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड उत्तराखंड के थैलेसीमिया ग्रसित मरीजों को बोन मैरो ट्रांसप्लांट (bone marrow transplant) कराए जाने के लिए 10 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाएगी।
एनएचएम की मिशन निदेशक सोनिका ने बताया कि 12 वर्ष तक की आयु के थैलेसीमिया रोगी जिनकी परिवारिक आय पांच लाख रुपये तक है और जिनका लोवर साइज पांच सेमी कोस्टल मार्जिन से कम है, उनसे संबंधित मैच्जड रिलेटेड डोनर की उपलब्धता और रक्त संचरण के आधार पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराए जाने को कोल इंडिया के माध्यम से यह सहायता राशि दी जाएगी।
इन अस्पतालों में मिलेगी सुविधा
ये सुविधा के लिए पीजी आइ चंडीगढ़,एम्स नई दिल्ली, राजीव गांधी कैंसर इंस्टिट्यूट एंड रिसर्च सेंटर नई दिल्ली, सीएमसी वेल्लौर, टाटा मेडिकल सेंटर कोलकता, संजय गांधी पीजी इंस्टिट्यूट आफ मेडिकल साइंस लखनऊ, नारायन हृदयालया लुधियाना और सीएमसी लुधियाना में मिलेगी।
मिशन निदेशक ने बताया कि उत्तराखंड में कुल 291 थैलेसीमिया रोगी पंजीकृत है, जिसमें जनपद हरिद्वार में 65, देहरादून 95, नैनीताल में 122 और अल्मोड़ा में नौ मरीज थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित हैं। इन मरीजों को नियमित रूप से रक्त संचरण की सुविधा स्वास्थ्य विभाग चार जनपदों नैनीताल,अल्मोडा, देहरादून, हरिद्वार के डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर (District Early Intervention Centre) में प्रदान करता है, जिनके माध्यम से थैलेसीमिया मरीजों को निश्शुल्क रक्त संचरण और आवश्यक औषधियां देने की सुविधा है। इस सुविधा के तहत चालू वित्तीय वर्ष के दौरान मरीजों 1427 बार निश्शुल्क रक्त संचरण और आवश्यक औषधियां उपलब्ध कराई जा चुकी है। जानिए क्या है थैलेसीमिया
एनएचएम के प्रभारी अधिकारी डा वीएस टोलिया ने बताया कि थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से आनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्तरोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है, जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु में ही हो जाती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है, जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
इसके अलावा थैलेसीमिया माइनर वाला व्यक्ति थैलेसीमिया करियर की अवस्था में होता है और अगर पति-पत्नी दोनों थैलेसीमिया कैरियर हैं तो उनकी संतान थैलेसीमिया मेजर रोग से ग्रसित होने की 25 प्रतिशत संभावना हो सकती है। स्क्रीनिंग टैस्ट में थैलेसीमिया कैरियर पाए जाने पर संबंधित को भविष्य में पैलेसीमिया करियर से विवाह न करने की सलाह दी जाती है, ताकि भविष्य में थैलेसीमिया मेजर रोग ग्रसित बच्चों के जन्म को रोका जा सके।