हल्द्वानी। संवाददाता। इसे सिस्टम की लापरवाही कहें या फिर व्यवस्था की खामी। जो बेटा माता-पिता के बुढ़ापे की लाठी था, 25 साल पहले उसकी मौत हो गई। फौज में मेजर के पद पर तैनात बेटे की 1993 में लाश मिली थी और मौत कैसे हुई, यह रहस्य आज भी बरकरार है। बेटे के जाने के बाद उसकी पेंशन का आसरा था।
बूढ़े पिता इस उम्मीद में सरकारी दफ्तरों की दौड़ लगाते रहे। पेंशन नहीं मिली और आखिर में उन्होंने भी बेटे की मौत के पांच साल बाद दम तोड़ दिया। एक वर्ष पहले मां ने एक सैन्य अफसर के माध्यम से सिस्टम से फिर दरख्वास्त की तो अब जाकर पेंशन जारी की गई है। यानी 25 साल बाद मां को इंसाफ मिला है।