देहरादून। उत्तराखंड में कल शनिवार को छठ पूजा पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। श्री राज्यपाल द्वारा अवकाश घोषित किया गया है। इस दौरान सभी बैंक, कोषागार तथा उपकोषागार में भी अवकाश रहेगा।
जीवन में खुशहाली बनाए रखने के लिए और किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए छठ व्रत रखा जाता है। यह एक कठिन व्रत है जो 36 घंटों तक निर्जाला रखा जाता है।
वैसे तो ये व्रत वर्ष में दो बार होता है। एक चैत माह में और दूसरा कार्तिक माह में। इनमें कार्तिक मास के छठ का विशेष महत्व है। इसका कारण यह माना जाता है कि इन दिनों भगवान विष्णु जल में रहते हैं। सूर्य को भगवान विष्णु का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है, इसलिए इन्हें सूर्य नारायण भी कहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान विष्णु की इस तरह से पूजा सिर्फ बिहार और उसके आस पास वाले क्षेत्र में ही क्यों की जाती है।
सूर्य षष्ठी पर्व में नदी या तालाब में कमर तक प्रवेश करके उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, इससे भगवान विष्णु के सूर्य रूप और जल में स्थित विष्णु के अप्रत्यक्ष रूप की पूजा एक साथ हो जाती है। इसलिए कार्तिक मास की सूर्य षष्ठी व्रत का विशेष महत्व है।
बिहार और पूर्वांचल में सूर्य षष्ठी पर्व को सभी पर्वों में विशेष महत्व दिया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र प्राचीन काल से कृषि प्रधान क्षेत्र रहा है। सूर्य को कृषि का आधार माना जाता है, क्योंकि सूर्य ही मौसम में परिवर्तन लाता है।
सूर्य के कारण ही बादल जल बरसाने में सक्षम होता है। सूर्य अनाज को पकाता है। इसलिए सूर्य का आभार व्यक्त करने के लिए प्राचीन काल से इस क्षेत्र के लोग सूर्य पूजा करते आ रहे हैं। वेदों में भी सूर्य को सबसे प्रमुख देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन सूर्य पूजा से सूर्य षष्ठी पर्व की शुरुआत कैसे हुई इस विषय में सूर्य पुत्र कर्ण से जुड़ी मान्यताएं हैं। सूर्य पुत्र कर्ण अंग देश का राजा था। अंग देश वर्तमान में बिहार का भागलपुर जिला है। कर्ण के आराध्य देव भगवान सूर्य थे।
नियमित रूप से गंगा नदी में कमर तक प्रवेश करके कर्ण भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया करते थें। कर्ण ने अपने राज्य में सर्वप्रथम सूर्य षष्ठी पर्व की शुरुआत की। धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया और सूर्य षष्ठी पर्व पूरे बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तरप्रदेश में श्रद्धापूर्वक मनाया जाने लगा ।