श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा और किन्नर अखाड़ा की पेशवाई के दौरान संत समाज की आस्था के साथ वैभव का समागम भी दिखाई दिया। साधु संतों का लाव-लश्कर शाही अंदाज में हाथी घोड़ों, ऊंट, बग्घियों और आदिकालीन संस्कृति से सुसज्जित रथों पर सवार होकर निकला। हर-हर महादेव के जयघोष के बीच फूलमाला से लदे अचार्य महामंडलेश्वरों, महामंडलेश्वरों, किन्नरों और नागा साधुओं के दर्शनों को सड़कों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।
20 फीट की ध्वज पताका, हाथी, घोड़े, ऊंट, बग्घी, बैंडबाजों के साथ तीनों अखाड़ों की पेशवाई बृहस्पतिवार शाम करीब चार बजे ज्वालापुर के पांडेयवाला स्थित अस्थायी छावनी से शुरू हुई। पेशवाई का नेतृत्व श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा ने किया। इसके बाद श्री पंच अग्नि अखाड़ा और फिर किन्नर अखाड़ा की शोभायात्रा निकली। चार संत भगवान दत्तात्रेय की चांदी की पालकी को कंधे पर रखकर पेशवाई के सबसे आगे चले।वहीं पालकी की सुरक्षा में पीछे ध्वज के साथ नागा साधुओं की टोलियां शामिल थी। धूनी की राख में सराबोर नागा साधु करतब दिखा रहे थे। इसके बाद कुंभ कलश रखे सोने के सिंहासन पर जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि विराजमान थे। अखाड़ा के महामंडलेश्वर और मंडलेश्वर चांदी के हौदे में बैठ थे। रत्न, स्वर्ण और चांदी से जड़ित छतरी हौदों की शोभा बढ़ा रही थी।
श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के ठीक पीछे श्री पंच अग्नि अखाड़ा का काफिला था। अखाड़ा की आराध्य मां गायत्री की चांदी की पालकी फूलों से सजी थी। पेशवाई के सबसे आगे पंच अग्नि अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ स्वामी कृष्णानंद रथ पर सवार थे। सबसे अंत में था सफेद ध्वज के साथ किन्नर अखाड़ा का काफिला था। अखाड़ा की पेशवाई में सबसे आगे आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने की। श्रद्धालुओं ने बरसाए फूल
शोभायात्रा का पांडेवाला ज्वालापुर में भव्य स्वागत हुआ। लोगों ने छतों से फूल बरसाए। यात्रा नील खुदाना, कोतवाली ज्वालापुर, जामा मसजिद बाजार, रेल चौकी, आर्या नगर चौक से होकर चंद्राचार्य चौक पहुंची। यहां से वाल्मीकि चौक, माया देवी प्रांगण होकर ललतारौ पुल स्थित छावनी पहुंची। सभी जगहों पर दर्शकों ने शोभायात्रा का भव्य स्वागत किया। यात्रा को देखने के लिए सड़क के दोनों ओर हाथ जोड़े श्रद्धालुओं ने स्वागत किया।पेशवाई में निरंजनी अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्री महंत हरि गिरि, अंतरराष्ट्रीय सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज, राष्ट्रीय सचिव श्रीमहंतमोहन भारती, श्रीमंहत महेशपुरी, श्रीमहंत शैलेंद्र गिरि, श्रीमहंत गणपतगिरि, उपाध्यक्ष श्रीमहंत विद्यानंद सरस्वती, श्रीमहंत नारायणगिरि, थानापति नीलकंठ गिरि, सर्पूणानंद ब्रह्मचारी आदि शामिल थे।
जूना अखाड़े की पेशवाई के दौरान महामंडलेश्वर स्वामी वीरेंद्रानंद का रथ लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। रथ के आगे उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर लोक कलाकार छोलिया नृत्य कर रहे थे। रथों पर भी गढ़वाल और कुमाऊं के लोक कलाकार नृत्य करते चल रहे थे। जूना अखाड़ा की पेशवाई में उत्तराखंड की लोक संस्कृति की निराली छटा दिखी। पेशवाई में पहली बार पाल वंश राजा और शिक्षाविद् स्वामी वीरेंद्रानंद महामंडलेश्वर के रूप में शामिल हुए।रणसिंघा के साथ पेशवाई निकली तो मसकबीन, ढोल दमाऊ और हुड़का की धुन पर हाथों में तलवार थामे छोलिया कलाकार थिरकने लगे। पीछे खड़े महामंडलेश्वर के शिष्यों ने जय उत्तराखंड और जय भारत के नारे लगाए। अनूठी रथयात्रा देख श्रद्धालु गदगद हो गए। चेहरे पर मधुर मुस्कान के साथ महामंडलेश्वर संतों को आशीर्वाद दे रहे थे। सेल्फी लेने आ रहे लोगों को सुरक्षा बलों ने बमुश्किल किनारे किया।