प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साधना स्थली रही गरुड़चट्टी उपेक्षा का शिकार है। लगभग तीन दशक पूर्व भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञ इसे टाउनशिप के रूप में विकसित करने की बात अपनी रिपोर्ट में कह चुके हैं। लेकिन इस दिशा में कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है। जून 2013 की आपदा के बाद से यह प्राचीन मंदिरों व धर्मशालाओं का क्षेत्र वीरान पड़ा है। इन आठ वर्षों में यहां गिनती के श्रद्धालु ही पहुंचे हैं।
आपदा के बाद से मंदाकिनी नदी के दोनों तरफ तेज भू-कटाव हो रहा है, जिसका असर अब गरुड़चट्टी क्षेत्र पर भी दिखने लगा है। भूकटाव का दयारा गरुड़चट्टी में बने भवनों के समीप पहुंच गया है। लेकिन इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है। 20 अक्तूबर 2017 को पीएम मोदी ने केदारनाथ धाम पहुंचने पर गरुड़चट्टी में बिताए दिनों को याद किया था। उन्होंने यहां 1980 में डेढ़ महीने साधना की थी। उन्होंने इस स्थान को विकसित करने पर जोर दिया था। इसके बाद शासन ने केदारनाथ से गरुड़चट्टी तक के लिए साढ़े तीन किमी पैदल मार्ग का निर्माण कराया था। इस रास्ते को केदारनाथ से जोड़ने के लिए मंदाकिनी नदी पर स्टील गार्डर पुल बनाया जा रहा है।
गरुड़चट्टी के बिना केदारनाथ धाम की कल्पना नहीं की जा सकती। यह क्षेत्र आपदा से पूर्व यात्रियों व साधु-संतों का प्रमुख ठौर था। लेकिन आपदा के बाद से इस क्षेत्र को न तो मंदिर से जोड़ने के लिए प्रयास हो रहे हैं और न यहां सुविधाएं जुटाई जा रही हैं।
– मनोज रावत, विधायक, केदारनाथ
गरुड़चट्टी को विकसित करने को लेकर कोई योजना फिलहाल नहीं है। पूर्व में क्या सर्वेक्षण हुआ था, इस बारे में मुझे जानकारी नहीं है। जीएसआई की रिपोर्ट का अध्ययन किया जाएगा, उसी के आधार पर योजना तैयार की जाएगी।
– मनुज गोयल, जिलाधिकारी, रुद्रप्रयाग