सर संघचालक मोहन भागवत ने रविवार को परिवार प्रबोधन कार्यक्रम में कुटुंब के लिए छह मंत्र दिए। उन्होंने भाषा, भोजन, भजन, भ्रमण, भूषा और भवन के जरिये अपनी जड़ों से जुड़े रहने का संदेश दिया। कहा कि जैसे यहां पर परिवार प्रबोधन हो रहा है, उसी तरह सप्ताह में सभी परिवार कुटुंब प्रबोधन करें। इसमें एक दिन परिवार के सभी लोग एक साथ भोजन ग्रहण करें, इसमें अपनी परंपराओं, रीति रिवाजों की जानकारी दें। फिर आपस में चर्चा करें और एक मत बनाएं और उस पर कार्य करें। आम्रपाली संस्थान में आयोजित कार्यक्रम में भागवत ने कहा कि घर में अपनी भाषा बोलनी चाहिए। हालांकि, कोई अन्य भाषा भी सीखने का चलन बढ़ना चाहिए। कोई पर्व, त्योहार है तो अपने पारंपरिक वेषभूषा धारण करें। भागवत ने कहा कि हमारे देश में करीब 800 प्रकार के भोजन हैं, इनका सेवन करें। उत्तराखंड के कई प्रकार के भोजन हैं, उनका सेवन करना चाहिए। कभी-कभार बाहर का भोजन तो ठीक है, लेकिन सामान्य तौर पर अपनी आबोहवा के अनुकूल भोजन ग्रहण करें।
भागवत ने भ्रमण पर कहा कि पूरी दुनिया देखनी चाहिए, लेकिन काशी, चित्तौड़गढ़ से लेकर हल्दीघाटी, जलियांवाला बाग भी देखना चाहिए। अपने घर के अंदर महात्मा गांधी, भगत सिंह, डॉ. आंबेडकर, वीर सावरकर आदि के चित्र लगाने चाहिए। घर पर वेलकम शब्द क्यों? सुस्वागत क्यों नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि रामायण में कुटुंब की कहानी है, इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। कुटुंब बनेगा तो उससे समाज बनेगा। इससे सोया हुआ राष्ट्र जागेगा और भारत विश्व गुरु बनेगा। उन्होंने कहा कि गृहस्थ आश्रम में रहने वालों के ऊपर पूरे समाज की जिम्मेदारी होती है। अपने परिवार के साथ आसपास के लोगों की भी चिंता करें।
भागवत ने करीब एक घंटे तक संबोधन दिया। उन्होंने छोटी- छोटी बातों और उदाहरणों के जरिये बड़ा संदेश देने की कोशिश की। उन्होंने पर्यावरण, जल संरक्षण से लेकर दकियानूसी विचारों पर अपनी बात रखी। कहा कि हरित घर बनाएं। परिवार के लोग एक पौधा जरूर लगाएं। हरियाली की वृद्धि करें। पर्यावरण को जीतना नहीं है, उसे देते भी रहना है। पानी को बचाना चाहिए। उन्होंने छुआछूत जैसी दकियानूसी बातों से दूर रहने के लिए कहा। कहा कि छुआछूत को नकारें। यह भी कहा कि भारत माता के सब लाल हैं। हममें कोई भेद नहीं है। उन्होंने सामाजिक समरसता की बात कही।