हरिद्वार। धर्मनगरी हरिद्वार में यूं तो देवियों के कई मंदिर हैं। लेकिन चूड़ादेवी की महिमा ही अनोखी है। भगवानपुर तहसील मुख्यालय से करीब सात किमी दक्षिण दिशा में सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी मंदिर है।
वैसे तो इस मंदिर में भक्तों का आना-जाना वर्षभर लगा रहता हैं, लेकिन चैत्र एवं शारदीय नवरात्र के मौके पर यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पर भंडारे आदि करते हैं। नवरात्र में हजारों की संख्या में यहां पर भक्तों की भीड़ रहती है।
महात्य
- मां चूड़ामणि मंदिर मां भगवती के 52 सिद्धपीठों में से एक है।
- इसका वर्णन पुराणों सहित दुर्गा सप्तसती में भी मिलता है।
- जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से कोई भी मनोकामना लेकर आता है। मान्यता है कि माता उसकी सभी मनोकामना पूरी करती हैं।
- कहा जाता है कि जब भगवान शंकर सती को लेकर ब्रह्मांड में घूम रहे थे तो भगवान विष्णु के सुदर्शन से सती का चूड़ा यहां पर गिर गया था। तभी से यह स्थान चूड़ामणि के नाम से विख्यात है।
- मान्यता है कि यहां पर निसंतान दंपती आकर पूजा करते हैं तो उनको संतान की प्राप्ति होती है। मंदिर से वह लोकड़ा (लकड़ी का गुड्डा) चोरी से अपने साथ ले जाते हैं।
- संतान होने पर अषाढ़ माह में संतान के साथ ढोल-नगाड़ों सहित मां के दरबार में पहुंचकर इसे वापस करते है। प्रसाद चढ़ाते हैं। तथा भंडारा इत्यादि भी करते हैं।
- मंदिर प्रतिदिन सुबह चार बजे खुलता है। रात आठ बजे मंदिर के कपाट बंद होते हैं।
- इसी गांव में एक सिद्ध बाबा बणखंडी भी हुए थे। ये 84 सिद्ध बाबाओं में से एक हैं। सर्वप्रथम मंदिर का शुभारंभ इनके द्वारा ही किया गया था।
ऐसे पहुंचे
चूड़ामणि देवी मंदिर में पहुंचने के लिए श्रद्धालु वाया भगवानपुर से होकर आते हैं। इसके अलावा पेंसेंजर ट्रेन के जरिए मंदिर से करीब तीन किमी दूर चुड़ियाला रेलवे स्टेशन पर उतरते हैं और यहां से विक्रम आदि से मंदिर पहुंचते थे। यहां पर आवागमन के साधन सुगमतापूर्वक मिल जाते हैं।