शक्ति पीठ है बागेश्वर की कोट भ्रामरी; मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है

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कोट भ्रामरी मंदिर एक शक्ति पीठ है। यहां मां से जो भी भक्त सच्चे मन से मनौती करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। मां अपने सभी भक्तों पर कृपा दृष्टि बनाए रखतीं हैं। यहां वर्षभर में दो बार मेला लगता है। चैत्र मास में यहां नि:संतान महिलाएं रातभर हाथ में दिया रखकर प्रार्थना करती हैं। इसे रणचूलाकोट भी कहते हैं। यह कत्यूर घाटी के मध्य में टॉप पर स्थित है। यहां से कत्यूर घाटी का सौंदर्य देखते ही बनता है।

बागेश्वर (गरुण) : कोट भ्रामरी मंदिर श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा का केंद्र है। मंदिर की खास विशेषता यह है कि यहां वर्षभर में दो बार मेला लगता है। चैत्र मास में यहां नि:संतान महिलाएं रातभर हाथ में दिया रखकर प्रार्थना करती हैं। इसे रणचूलाकोट भी कहते हैं। यह कत्यूर घाटी के मध्य में टॉप पर स्थित है। यहां से कत्यूर घाटी का सौंदर्य देखते ही बनता है।

ऐतिहासिक कोट भ्रामरी मंदिर में मां भ्रामरी की पूजा शक्ति रूप में की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब कत्यूरी राजा बासंतिदेव और आसंतिदेव कत्यूर में अपनी राजधानी बनाने पहुंचे तो यहां पहले से ही भूमिगत राजधानी बनाए बैठे अरुण नामक दैत्य से उनका युद्ध हो गया। अरुण दैत्य ने यहां बेहद आतंक मचाया था। तब इन दोनों राजाओं का अरुण दैत्य से भयंकर युद्ध हो गया। पराजित राजाओं ने मां जगदंबा की आराधना की। तब मां ने वरदान प्राप्त अरुण दैत्य का संहार करने के लिए भंवरों का रूप धारण किया और दैत्य का संहार कर दिया। तब कत्यूरी राजाओं ने यहां अपनी राजधानी बनाई। मां के भ्रमर रूप में अवतरित होने के कारण ही मां भ्रामरी कहलाई।

कोट भ्रामरी मंदिर में इतिहास की झलक दिखाई देती है। यह मंदिर प्राचीन होने के कारण वास्तुकला अद्भुत है। समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, लेकिन मूल मंदिर से कोई छेड़खानी नहीं की गई है।

ऐसे पहुंचे मंदिर कैसे

हल्द्वानी तक ट्रेन या बस से। हल्द्वानी से बस या टैक्सी से 190 किमी दूर बागेश्वर जिले के बैजनाथ पहुंचना पड़ेगा। यहां से तीन किमी दूर सड़क के पास ही कोट भ्रामरी मंदिर स्थित है।  कोट भ्रामरी मंदिर एक शक्ति पीठ है। यहां मां से जो भी भक्त सच्चे मन से मनौती करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। मां अपने सभी भक्तों पर कृपा दृष्टि बनाए रखतीं हैं। –राजेंद्र प्रसाद तिवारी, पुजारी

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