देहरादून। आज श्री हरिनाम संकीर्तन सम्मेलन और शिलान्यास का पांचवा दिन रहा जिसमे विषय रहा हरिनाम की महिमा, हमारे अध्यिात्मक जगत में जीतनी भी साधनाएं हैं , उन सबका एक ही उद्शय होता है हमारे मनरूपी दर्पण को साफ करना। पूर्व जन्म में किए गए दुष्कर्म के कारण हमारा मन मैला हो जाता है, क्योंकी जैसी क्रियाएं होती हैं वैसा ही मन बन जाता है। स्वामी मुनी ने बताया ‘पर दुखे सुखी, पर सुखे दुखी, सदा मिथ्या भाषी ‘ निज सुख लागी पापे नहीं डरी दयाहीन स्वार्थ पर । अर्थात हम लोग दूसरें के दुख को देखकर खुश होते हैं और दूसरों की खुशी को देखकर दुखी, हमेशा झूठ बोलते हैं, अपने और अपने परिवार को सुख देने के लिए बड़े से बड़े पाप करने से भी नहीं डरते। कलयुग में सर्वश्रेष्ठ साधनाएं हरिनाम संकीर्तन मनरूपी दर्पण को मार्जित करने के लिए है। हरिनाम संकीर्तन करने से मनरूपी दर्पण मार्जित हो जाएगा और फिर हम दूसरे के दुख से दुखी होंगे और सुख से सुखी होंगे । उन्होनें बताया यही अंतर होता है एक माया में फसे हुए जीव का और एक उच्च कोटी के संत का।
किसी ने लिखा है संत का हृदय माखन की तरह होता है, लेकिन किसी ने उसके उपर भी लिखा है ‘‘ संत का हदय माखन नहीं माखन से भी ज्यादा कोमल होता है ,क्योंकि माखन तब पिघलता है जब उसे ताप लगता है लेकिन संत तब पिघलता है जब किसी दुसरे को दुखी देखता है। उन्होनें कहा हम सभी एक ही प्रभु की संताने हैं, लेकिन हम उनसे अपना रिशता भूल चुके हैं, उन्होनें कहा जब हमारा मनरूपी दर्पण मार्जित होगा तो भगवान से क्या रिशता है वो सामने आएगा, जब हमारा प्रभु से प्यार हो जाएगा तो हम उनके बनाए गए किसी भी प्राणी से प्रेम करेंगे ।
उन्होनें तीन प्रकार के दुखों के बारे में बताया जिनमें आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक जो कि सारे कष्ट हरिनाम से दूर हो जाते हैं।
उन्होनें बताया हरिनाम की किरणों से ही मंगल रूपी कमल का फूल खिलता है। हमारे हृदय में जो आनंद रूपी सागर है वो हिलोरी लेने लगता है और आत्मा आंनद से सराबोर हो जाती है ये हरिनाम संकीर्तन के फायदे हैं।
इस अवसर पर स्वामी मुनी, स्वामी भक्ति शोध जितेन्द्र महाराज, स्वामी भक्ति विवेक परमार्थी महाराज मौजूद रहे।