एक परंपरा ऐसी भी : आंखों पर पट्टी बांधकर होता है जोत का बावड़ी में विसर्जन

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यह परंपरा सदियों से इसी तरह से निभाई जा रही है। ऐसी अनोखी परंपरा और किसी मंदिर में नहीं निभाई जाती। अन्य मंदिरों की जोत का विसर्जन कंकाली तालाब में किया जाता है।
रायपुर (छत्तीसगढ़) :  यहाँ महामाया मंदिर में अष्टमी हवन के बाद आधी रात से पहले सभी भक्तों को बाहर कर दिया जाता है। मंदिर के ट्रस्टी व पुजारीगण जब आश्वस्त हो जाते हैं कि मंदिर में एक परिन्दा तक नहीं है तो वे भी मंदिर से बाहर चले जाते हैं।
ऐसे में मंदिर के प्रधान बैगा मां महामाया की महाजोत को मंदिर में ही स्थित बावड़ी तक ले जाकर विसर्जित करते है। महाजोत का विसर्जन करते समय बैगा भी अपने आंखों पर पट्टी बांध लेते हैं। जोत विसर्जन होते हुए बैगा भी नहीं देखते। बावड़ी में जोत को छोड़कर महामाया देवी को प्रणाम करके बैगा वापस बावड़ी से बाहर निकल आते हैं, वे पीछे पलटकर नहीं देखते।
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला ने यह खुलासा किया। बताते हैं कि लगभग 1300 साल पूर्व 8वीं शताब्दी में निर्मित महामाया मंदिर में जहां चकमक पत्थर को रगड़कर जोत प्रज्ज्वलित किया जाता है वहीं जोत विसर्जन की परंपरा बैगा द्वारा आंखों पर पट्टी बांधकर निभाई जाती है।
यह परंपरा सदियों से इसी तरह से निभाई जा रही है। ऐसी अनोखी परंपरा और किसी मंदिर में नहीं निभाई जाती। अन्य मंदिरों की जोत का विसर्जन कंकाली तालाब में किया जाता है।
आज तक नहीं सूखी सैकड़ों साल पुरानी बावड़ी
पं.शुक्ला के अनुसार 13वीं शताब्दी में मंदिर निर्माण के समय से ही बावड़ी बनी हुई है। बावड़ी तक पहुंचने के लिए 50 फीट से अधिक नीचे तक सीढ़ियां बनी है। इसके बाद बावड़ी का पानी नजर आता है। बावड़ी के बारे में कहा जाता है कि इसकी गहराई की कोई थाह नहीं है।
सैकड़ों साल बाद भी आज तक बावड़ी नहीं सूखी है। हमेशा पानी लबालब भरा रहता है। कई बार लोगों ने बावड़ी की गहराई नापने की कोशिश की मगर बावड़ी की गहराई को नापा नहीं जा सकता। आज भी 20-25 फुट का बांस बावड़ी में पूरा का पूरा डूब जाता है। बावड़ी के नीचे उतरने के लिए सीमेंट की पक्की सीढ़ियां बना दी गई है और चारों ओर जालीदार गेट से बावड़ी को घेर दिया गया है ताकि कोई भी अंदर न घुस सके।
प्रतिदिन बावड़ी के पानी से होता है किया महामाया का अभिषेक
मां महामाया देवी की प्रतिमा का अभिषेक बावड़ी के पानी से ही किया जाता है। पहले बावड़ी के नीचे से उपर तक घड़ों में भरकर पानी लाया जाता था किन्तु अब टुल्लू पंप से पानी खींचा जाता है। बावड़ी का पानी ही पूरे मंदिर में सप्लाई किया जाता है।
बावड़ी में सुरंग से जुड़ा है महामाया और कंकाली मंदिर
पं.शुक्ला बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि अथाह गहराई वाली बावड़ी के भीतर विशाल सुरंग है। यह सुरंग आधा किलोमीटर दूर स्थित कंकाली मंदिर तक जाती है। किवंदती है कि पहले इस सुरंग का इस्तेमाल राजा मंदिर में आने-जाने के लिए करते थे। सुरंग का दावा किया जाता है लेकिन किसी ने सुरंग देखी नहीं है।
अन्य देवी मंदिरों की जोत कंकाली तालाब में
कंकाली मंदिर, शीतला मंदिर समेत घर-घर में प्रज्ज्वलित की जाने वाली जोत का विसर्जन कंकाली तालाब में हीं किया जाता है। यहां सुबह से लेकर दोपहर तक जसगीत गाते हुए भक्त सिर पर जवांरा कलश धारण किए पहुंचते हैं और जोत विसर्जित करते हैं।

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