अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष की कुर्सी के लिए मचे घमासान ने सोमवार को इतिहास बना दिया। कुर्सी एक और अध्यक्ष दो बन गए हैं। आठ साल पहले भी परिषद में दो फाड़ हुए, लेकिन दोनों ही अध्यक्ष हरिद्वार के नहीं थे। इस बार दोनों गुटों के अध्यक्ष हरिद्वार के बने हैं। इससे संत समाज ही नहीं, बल्कि नेता एवं सरकारें भी असमंजस में फंस गए हैं।
अखाड़ा परिषद संतों की सर्वोच्च संस्था है। नेता हो या अभिनेता संतों के दर्शन और आशीर्वाद के लिए अखाड़ों में लाइन लगती है, लेकिन संतों में कुर्सी की आपसी खींचतान से स्थानीय विधायक से लेकर सरकार के मंत्रियों ने खुद को अलग रखा है।
अखाड़ा परिषद के ब्रह्मलीन अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि के आकस्मिक निधन के बाद संतों की राजनीति और कुर्सी का झगड़ा अखाड़ों से बाहर आया है। झगड़े ने इतिहास की पुनरावृत्ति कर दी। कुल 13 अखाड़ों में दो फाड़ हुए और सात अखाड़ों ने 21 अक्तूबर को महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी को अध्यक्ष एवं बैरागी अखाड़े के राजेंद्र दास को महामंत्री चुन लिया। इन सात अखाड़ों में शामिल निर्मल अखाड़े में भी दो फाड़ हुए और महंत रेशम सिंह और उनके संतों ने परिषद की मौजूदा कार्यकारिणी को समर्थन दे दिया।
वहीं, सोमवार को प्रयागराज में निर्मल अखाड़े के रेशम सिंह गुट समेत सात अखाड़ों के संतों ने मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं श्री निरंजनी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी को परिषद का अध्यक्ष चुन लिया, जबकि बैरागी अखाड़े के श्रीमहंत मदनमोहन दास ने पत्र भेजकर समर्थन दे दिया।
श्री निरंजनी अखाड़े के सचिव को कुल आठ अखाड़ों के संतों का समर्थन मिल गया। अखाड़ों में अंदरखाने संतों के बीच विवाद भी गहरा रहा है। समर्थन और विरोध को लेकर चिंगारियां भी सुलगने लगी हैं। अखाड़ा परिषद के दोनों ही गुट अखाड़ों के संतों को अपने अपने पक्ष में करने के लिए दाव खेलने लगे हैं।
अखाड़ों की राजनीति से सरकार के नेता एवं मंत्री भी असमंजस में फंस गए हैं। अभी तक नई कार्यकारिणी पदाधिकारियों के स्वागत से स्थानीय विधायक से लेकर सरकार के मंत्रियों ने दूरियां बनाई हैं। 27 अक्तूबर को मनसा देवी ट्रस्ट अध्यक्ष और अखाड़ा परिषद के नवनियुक्त अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी हरिद्वार पहुंचेंगे।
दोनों अध्यक्षों में सरकार और संत समाज के लिए कौन सर्वमान्य होगा, आने वालों महीनों में साफ हो जाएगा। बता दें कि 2013 के प्रयागराज कुंभ से पहले भी अखाड़ा परिषद में दो फाड़ हुए। उस वक्त अयोध्या के श्रीमहंत ज्ञानदास परिषद के अध्यक्ष थे। परिषद में दो फाड़ होने के बाद निर्मल अखाड़े के बलवंत सिंह दूसरे गुट के अध्यक्ष बन गए। कुछ महीनों में ही आपसी सुलह हो गई।