हरिद्वार। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की मुक्ति योजना का विरोध बढ़ता जा रहा है। श्रीगंगा सभा के बाद अब विश्व हिंदू परिषद और अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित सहायक सभा ने भी योजना का विरोध किया है।
उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की ओर से अस्थि विसर्जन को लेकर मुक्ति योजना की शुरूआत करने की तैयारी की जा रही है। योजना के तहत देश और विदेश में बैठे लोग अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन अकादमी के माध्यम से करवा सकते हैं। कर्मकांड का लाइव प्रसारण की भी योजना है। बुधवार को हरकी पैड़ी पर हुई बैठक में विश्व हिंदू परिषद के जिलाध्यक्ष नितिन गौतम ने कहा संस्कृत अकादमी के सचिव अपनी मर्यादा भूल गए हैं। अच्छा होगा कि वह अपनी मर्यादा में रहें और जो कार्य उनको सौंपा गया है उसको इमानदारी से करें।
उन्होंने कहा कि तीर्थ की मर्यादा, तीर्थयात्री और तीर्थ पुरोहितों के अधिकारों की रक्षा के लिए विश्व हिंदू परिषद संकल्पबद्ध है। किसी को भी तीर्थ की मर्यादा और परंपराओं से छेड़छाड़ करने का अधिकार नही है। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित सहायक सभा के सचिव आशीष मारवाड़ी ने कहा कि उत्तराखंड संस्कृत अकादमी अपने उद्देश्यों को भूल कर तीर्थ पुरोहितों के परंपरागत अधिकारों का हनन करने पर तुली है, जिसे बरदाश्त नहीं किया जाएगा।
तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित ने कहा यह पुरोहितों के परंपरागत अधिकारों पर कुठाराघात करने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि संस्कृत विद्यालयों की स्थिति बहुत खराब है। वहां विद्यार्थियों का अकाल है और संस्कृत अकादमी के सचिव मुक्ति योजना चला कर अस्थिप्रवाह करवा कर धन अर्जित करना चाहते हैं।
विवाद को जन्म दे रही है संस्कृत अकादमी : प्रदीप झा
संस्कृत अकादमी की मुक्ति योजना का श्रीगंगा सभा ने विरोध किया है। गंगा सभा के अध्यक्ष प्रदीप झा ने कहा कि तीर्थ पुरोहित समाज आदि अनादि काल से अस्थि प्रवाह का कार्य करता चला आ रहा है। केवल कुल पुरोहित ही अस्थि प्रवाह का अधिकार रखता है।
श्रीगंगा सभा के अध्यक्ष प्रदीप झा ने कहा कि अकादमी को तत्काल अपने निर्णय को वापस लेना चाहिए। तीर्थ पुरोहित के अधिकारों का हनन, उल्लंघन किसी भी सूरत में बरदाश्त नहीं किया जाएगा। केवल तीर्थ पुरोहित ही पौराणिक काल से अस्थि प्रवाह व अन्य धार्मिक कर्मकांड करते चले आ रहे हैं।
प्रदीप झा ने कहा कि संस्कृत अकादमी को संस्कृत के प्रचार-प्रसार व उसके संवर्द्धन के लिए काम करना चाहिए। इस तरह की घोषणा करना तीर्थ पुरोहित समाज की भावनाओं को आहत करने वाली है। वर्षों से परंपराओं का निर्वहन तीर्थ पुरोहित समाज करता चला आ रहा है।
उन्होंने कहा कि तीर्थ पुरोहित बिना किसी शुल्क के केवल यजमान की इच्छा के अनुसार कर्मकांड संपन्न कराते हैं। संस्कृत अकादमी के सचिव अस्थि प्रवाह जैसे पुण्य कार्यों का भी व्यवसायीकरण करना चाहते हैं। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि तत्काल इस निर्णय को वापस लिया जाए। वरना देश का तीर्थ पुरोहित समाज आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा।