हरिद्वार। कुंभनगरी हरिद्वार में नागा संन्यासियों का सबसे बड़ा दीक्षा कार्यक्रम होने जा रहा है। पांच अप्रैल को गंगा तट पर श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के एक हजार संन्यासी नागा दीक्षा प्राप्त करेंगे। हरिद्वार में दीक्षा लेने के कारण ये बर्फानी नागा के नाम से जाने जाएंगे। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा पांच लाख से अधिक नागा संन्यासियों का सबसे बड़ा अखाड़ा है।
सातों संन्यासी अखाड़ों में सबसे महत्वपूर्ण दीक्षा नागा संन्यासियों की होती है। चार कुंभनगर हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में नागा संन्यासियों को दीक्षा दी जाती है। नागा संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा में पांच अप्रैल को संन्यास दीक्षा का बड़ा आयोजन होने जा रहा है।
जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय सचिव और कुंभ मेला प्रभारी श्रीमहंत महेशपुरी ने बताया संन्यास दीक्षा के लिए चारों मढ़ियों संन्यासियों का पंजीकरण किया जा रहा है। उन्होंने बताया सभी पंजीकरण के आवेदन की सबकी बारीकि से जांच की जा रही है। पंजीकरण की जांच के बाद केवल योग्य और पात्र साधुओं का ही चयन किया जा रहा है।
कैसे बनेंगे नागा संन्यासी
श्रीमहंत महेशपुरी ने बताया नागा संन्यासी बनने के लिए कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इसके लिए सबसे पहले नागा संन्यासी को महापुरुष के रूप में दीक्षित कर अखाड़े में शामिल किया जाता है। तीन वर्षों तक महापुरुष के रूप में दीक्षित संन्यासी को संन्यास के कड़े नियमों का पालन करते हुए गुरु सेवा के साथ साथ अखाड़े में विभिन्न कार्य करने पड़ते हैं।
तीन वर्ष की कठिन साधना में खरा उतरने के बाद कुंभ पर्व पर उसे नागा बनाया जाता है। उन्होंने बताया इच्छुक संन्यासी पवित्र नदी में स्नान करके श्राद्ध, तर्पण और मुंडन के साथ संकल्प लेते हैं। सांसरिक वस्त्रों का त्याग कर कोपीन दंड, कमंडल धारण करते हैं। इसके बाद पूरी रात धर्मध्वजा के नीचे बिरजा होम में सभी संन्यासी भाग लेते हैं। चारु, दूध, अज्या यानी घी की पुरुष सूक्त के मंत्रों के उच्चारण के साथ रातभर आहुति देते हुए साधना करते हैं।
यह समस्त प्रक्रिया अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर की देख रेख में संपन्न होती है। प्रात:काल सभी संन्यासी पवित्र नदी तट पर पहुंचकर स्नान कर संन्यास धारण करने का संकल्प लेते हुए डुबकी लगाते हैं। गायत्री मंत्र के जप के साथ सूर्य, चंद्र, अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, सभी दिशाओं और सभी देवी देवताओं को साक्षी मानते हुए स्वयं को संन्यासी घोषित कर जल में डुबकी लगाते है।
आचार्य महामंडलेश्वर देंगे प्रेयस मंत्र
श्रीमहंत महेशपुरी ने बताया कि आचार्य महामंडलेश्वर नव दीक्षित नागा संन्यासी को प्रेयस मंत्र प्रदान किया जाता है। नव दीक्षित नागा संन्यासी तीन बार दोहराता है। इन समस्त क्रियाओं से गुजरने के बाद गुरु अपने शिष्य की चोटी काटकर विधिवत अपना नागा सन्यासी घोषित करता है।
चोटी कटने के बाद नागा शिष्य जल से नग्न अवस्था में बाहर आता है। अपने गुरु के साथ सात कदम चलने के बाद उनकी ओर से दिए गए कोपीन दंड और कमंडल धारण कर पूर्णनागा संन्यासी बन जाता है। श्रीमहंत महेशपुरी बताते हैं यह सारी प्रक्रिया अत्यंत कठिन होती है। इसलिए कई संन्यासी अयोग्य भी घोषित कर दिए जाते हैं।
25 अप्रैल फिर दी जाएगी दीक्षा
श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा दूसरे चरण में 25 अप्रैल को फिर से संन्यास दीक्षा का कार्यक्रम आयोजित करेगा। हालांकि इनमें दीक्षित होने वाले संन्यासियों को संख्या की जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।