धर्मनगरी की सड़कों पर कंधे पर थैला टांगे घूमने वाले दिव्यांग विजय पाल को लोग अच्छी तरह जानते और पहचानते भी हैं। विजय दिव्यांगता से हारने के बजाय उससे लड़ रहा है।
वह बेरोजगार लोगों के लिए प्रेरणा और भीख मांगने वालों के लिए आइना है। हरकी पैड़ी से लेकर कनखल और ज्वालापुर की सड़कों पर घूमकर मास्क और मौजे बेचकर गुजर बसर करता है। वह बेहद स्वाभिमानी और किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता है। उसकी खुद्दारी का हर कोई कायल भी है।
26 साल का विजय पाल मुरादाबाद जिले के कांठ का रहने वाला है। एक दशक से हरिद्वार में ही रहता है। हरिद्वार में ही आठ साल पहले सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। इससे उसके बायीं हाथ और पैर ने काम करना बंद कर दिया। दुर्घटना से पहले वह हरकी पैड़ी के आसपास घूमकर प्रसाद और श्रृंगार का सामान बेचता था।
दुर्घटना के बाद दिव्यांग होने पर भी जिंदगी से हार मानकर भीख नहीं मांगी। हरकी पैड़ी और आसपास में सैकड़ों बच्चे भीख मांगते हैं। इनमें जवान लोग भी शामिल हैं।
सड़कों पर घूम-घूम बेचता है सामान
कई श्रद्धालु दया पात्र समझकर उसे भीख देने की कोशिश भी करते हैं। वह भीख नहीं लेता। दया दिखाने वालों से सामान खरीदने का आग्रह करता है। कोरोना कर्फ्यू में जब बड़े से बड़े व्यापारी घर बैठ गए थे, विजय पाल ने मास्क और सैनिटाइजर की छोटी शीशियां बेचकर पैसे जुटाए।
15 दिन में जाता है घर
विजय पाल के परिवार में मां-पिता और पांच बहनों के अलावा पत्नी और छोटा बेटा है। पूरे परिवार की जिम्मेदारी विजय पाल के कंधों पर है। परिवार कांठ में रहता है। वह 15 दिन में एक बार घर जाता है।