प्रोफ़ेसर शास्त्री के पास 90 एकड़ ज़मीन है जिसे उन्होंने 3 लाख 50 हज़ार डॉलर में खरीदा और उस ज़मीन के आधे हिस्से में उन्होंने गाय रखी हैं और बाकी हिस्से में गायों का चारा रखा जाता है और कुछ सब्जियों की खेती की जाती है. जो सब्ज़ियां उगती हैं वह आसपास रहने वाले अमरीकियों को भी दी जाती हैं. प्रोफ़ेसर शास्त्री को उम्मीद है कि वह गोशाला के ज़रिए गाय की हिंदू धर्म में अहमियत के बारे में भी आम अमरीकियों की जानकारी बढ़ा सकेंगे.
भारत में गोरक्षा और गोशाला का चलन नया नहीं है. लेकिन भारत से बाहर गोशाला चलाने वाले कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने अपना जीवन ही उसके नाम कर दिया है. अमरीका के पेंसिलवेनिया प्रांत में एक भारतीय मूल के अमरीकी पिछले 17 वर्षों से गायों की सुरक्षा के मकसद से एक गौशाला चला रहे हैं.
मूल रूप से भारत के तमिलनाडु के रहने वाले प्रोफ़ेसर शंकर शास्त्री स्ट्राउड्सबर्ग इलाके में स्थित लक्षमी गोशाला के मालिक हैं. गौशाला में इस वक्त 23 गायें हैं. प्रोफ़ेसर शास्त्री ने इस गोशाला में गायों के अलग-अलग नाम रखे हैं. किसी गाय को वह कृष्णा बुलाते हैं, किसी को सावित्री, नंदिनी, योगेश्वरी तो किसी को रामा के नाम से बुलाते हैं.
मेरे सामने प्रोफ़ेसर शास्त्री ने एक गाय का नाम लेकर ज़ोर से बुलाया… “शारदा….शारदा ” और काले रंग की गाय शारदा हम लोगों के पास आ गई और मुंह उठाकर प्रोफ़ेसर शास्त्री को देखने लगी, जैसे पूछ रही हो कि “जी, क्यों बुलाया?” फिर जब कोई जवाब नहीं मिला तो शारदा पास पड़े कुछ घास-फूस खाने के लिए बढ़ गई. गायों और प्रोफ़ेसर शास्त्री के बीच स्नेह साफ़ देखा जा सकता है.
वह बताते हैं कि शारदा को पास के मंदिर की गोशाला वाले छोड़ गए क्योंकि वहां जगह छोटी थी. प्रोफ़ेसर शास्त्री न्यूयॉर्क में सिटी यूनिवर्सिटी में 30 साल तक इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर थे. उन्होंने अमरीका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की पढ़ाई की. साल 2000 में उन्होंने यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर की नौकरी से समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया और तय किया कि वह एक गोशाला बनाएंगे.
प्रोफ़ेसर शंकर शास्त्री ने ब्रुकलिन में अपना अपार्टमेंट बेचा और उसी धन से पेंसिलवेनिया में गोशाला के लिए ज़मीन खरीदी. अब उनका जीवन इसी गोशाला के ही इर्द गिर्द घूमता है. प्रोफ़ेसर शंकर शास्त्री का घर भी इसी गोशाला के एक कोने में है. वह सुबह तड़के उठकर गायों की देखभाल करना शुरू कर देते हैं.
अब उनकी गौशाला की एक वेबसाइट भी है. गायों की देखरेख करने में उनकी मदद के लिए वह वालंटियर रखने के लिए विज्ञापन भी देते हैं और दो-तीन लोग उनके साथ वालंटियर की तरह काम भी करने आते हैं. आजकल मार्विन नामक एक वालंटियर गोशाला में काम कर रहे हैं. वह बताते हैं कि उन्हें जानवर पसंद हैं इसलिए उन्हें गोशाला में काम करना पसंद है.
भारतीय मूल के लोग भी गोशाला में आकर गायों की सेवा करते हैं. तरह-तरह के पकवान बना कर लाते हैं और खिलाते हैं. प्रतीक रावल अपने पूरे परिवार के साथ कई घंटे कार का सफ़र तय करके गोशाला में गायों को खाना खिलाने आए. प्रतीक रावल कहते हैं कि अमरीका में कई मंदिरों ने गोशाला भी बनाई हुई हैं, लेकिन प्रोफ़ेसर शास्त्री की लक्षमी गोशाला की बात अलग है.
वह कहते हैं, “गुजरात में हमारे घर में भी गाय थीं और वहां ऐसे ही खिलाते थे, तो अब इसी तरह की गोशाला यहां अमरीका में मिल गई जहां हम खुद ही खिला सकते हैं. हम जैसा खुद खाते हैं वैसा ही खाना मेवा मिलाकर लाते हैं और खुद इन गायों को खिलाते हैं. हमें बहुत अच्छा लगता है. हमारे बच्चे भी इस बारे में सीखते हैं.” प्रतीक रावल ने बताया कि वह महीने में दो तीन बार इस गोशाला में ज़रूर आते हैं.
प्रोफ़ेसर शास्त्री बताते हैं कि उनके पास अंजान लोग भी गाय छोड़ जाते हैं. उन्होंने कहा, “हमारे पास कई अंजान लोग भी गाय लेकर आए, यहां गाय छोड़ गए जिससे हम उनकी देखभाल करें. यह बहुत ही छोटे पैमाने पर है. लाखों गाय मारी जा रही हैं हम तो सिर्फ 23 को ही बचा पाए हैं.” जो लोग अपनी गाय छोड़ गए वह अब उन्हें वापस भी नहीं लेने आते. जो गाय गोशाला में हैं उनमें से कोई दूध नहीं देती. लेकिन प्रोफ़ेसर शास्त्री कहते हैं कि गाय के गोबर के कंडे बनाकर वह बेचते भी हैं.
एक पाउंड गाय के गोबर का कंडा 6 डॉलर में बिकता है. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय गोबर के कंडे से अग्निहोत्रा नामक हवन भी किया जाता है.प्रोफ़ेसर शास्त्री कहते हैं कि बहुत से अमरीकी भी उनसे गोबर के कंडे खरीदकर अपने घरों में जलाते हैं जो सेहत और पर्यावरण के लिए भी अच्छा होता है. भारत में आजकल गोरक्षा के नाम पर हिंसा के मामलों के बारे में प्रोफ़ेसर शास्त्री ने कहा, “गोरक्षा के नाम पर ऐसी हरकतें बिलकुल गलत हैं. ऐसे लोगों से सरकार को सख्ती से निपटना चाहिए.” लेकिन वह यह भी कहते हैं कि ऐसे लोग बहुत कम हैं जो हिंसा करते हैं. प्रोफ़ेसर शास्त्री को इस बात पर भी अफ़सोस है कि दुनिया में सबसे अधिक मांस का एक्सपोर्ट भारत से होता है. वह मानते हैं कि लाखों जानवर मांस के धंधे के लिए मार दिए जाते हैं. लेकिन वह यह भी कहते हैं कि भारत में मुसलमानों को ईद में कानून के तहत कुर्बानी अंजाम देने की इजाज़त होनी चाहिए.
लड़कों ने मांगी माफ़ी
प्रोफ़ेसर शास्त्री की लक्षमी गोशाला को भी नफ़रत का सामना करना पड़ा था. इस वर्ष मार्च महीने में प्रोफ़ेसर शास्त्री की लक्षमी गोशाला के गेट पर एक गाय का कटा हुआ सिर मिला था.उस मामले में पुलिस के बाद एफ़बीआई ने भी जांच शुरू की क्योंकि वह नफ़रत की बुनियाद पर हिंसा का मामला बना था. प्रोफ़ेसर शास्त्री बताते हैं कि कुछ दिनों के बाद पता चला कि कुछ युवाओं ने उनको तंग करने के मकसद से यह हरकत की थी. बाद में दो लड़कों ने आकर माफ़ी मांगी और उन्होंने उन लड़कों को माफ़ कर दिया. मामला खत्म हो गया.
गाय की हिंदू धर्म में अहमियत
आस-पड़ोस के लोगों को गोशाला से कोई शिकायत नहीं है. अब तो गोशाला के आसपास रहने वाले कई अमरीकी लोग गोशाला में आकर गायों से मिलते हैं, उनको सहलाते, पुचकारते हैं और उनके लिए फल भी लेकर आते हैं.
प्रोफ़ेसर शास्त्री के पास 90 एकड़ ज़मीन है जिसे उन्होंने 3 लाख 50 हज़ार डॉलर में खरीदा और उस ज़मीन के आधे हिस्से में उन्होंने गाय रखी हैं और बाकी हिस्से में गायों का चारा रखा जाता है और कुछ सब्जियों की खेती की जाती है. जो सब्ज़ियां उगती हैं वह आसपास रहने वाले अमरीकियों को भी दी जाती हैं. प्रोफ़ेसर शास्त्री को उम्मीद है कि वह गोशाला के ज़रिए गाय की हिंदू धर्म में अहमियत के बारे में भी आम अमरीकियों की जानकारी बढ़ा सकेंगे.