चम्पावत : लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी बढ़ाने को लेकर नोटा, इनमें से कोई नहीं विकल्प का अभिनव प्रयोग किया गया । इससे जाहिर तौर पर लोकतंत्र में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ी है। लेकिन 2022 में हुए चम्पावत विधानसभा प्रदेश की पहली ऐसी सीट होगी जहां उपचुनाव के दौरान किसी भी मतदाता ने नोटा का प्रयोग नहीं किया।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ईवीएम में नोटा बटन का प्रयोग चलन में आया। इसके आते ही लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान करने लगे। मतदान प्रतिशत भी कुछ हद तक बढ़ गया। चम्पावत विधानसभा में वर्ष 2017 में 1044 मतदाताओं ने नोटा बटन दबाया था। वर्ष 2022 के फरवरी माह में हुए विधानसभा चुनाव में 946 मतदाताओं ने नोटा बटन का प्रयोग किया।
तीन माह बाद फिर चम्पावत विधानसभा में उपचुनाव हुए। इस बार यहां कुल 96 हजार 213 मतदाता थे। जिनमें से 61595 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। लेकिन इतने मतदाताओं में से एक मतदाता ने भी नोटा बटन का प्रयोग नहीं किया।
सीएम का चुनाव लड़ना रहा कारण
असल में चम्पावत विधानसभा के उपचुनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव लड़ रहे थे। लोगों को उम्मीद थी की मुख्यमंत्री को अगर जीताते है तो क्षेत्र का विकास होगा। यही कारण रहा होगा की लोगों ने नोटा बटन का प्रयोग नहीं किया होगा। सीएम के अलावा कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी, सपा ललित मोहन भट्ट, निर्दलीय हिमांशु गड़कोटी चुनावी मैदान में थे। पहले 17एक फार्म जाता था भरा नोटा से पहले भी आपको चुनाव लड़ने वाला कोई प्रत्याशी पसंद नहीं है तो आप 17ए फार्म भरकर इजहार कर सकते थे। नापसंदगी का इजहार के लिए आप पीठासीन अधिकारी से फार्म 17ए मांगते थे। उसके बाद वह पहले आपकी ऊंगुली में स्याही लगाएगा। उसके बाद एक रजिस्टर में आपके हस्ताक्षर कराए जाते थे। इस तरह आप अपना वोट दे सकते थे। लेकिन जागरुकता के अभाव में लोग इसका प्रयोग नहीं करते थे।
2009 से नोटा की हुई शुरुआत
नोटा यानि इनमें से कोई नहींं का प्रयोग पहली बार भारत में वर्ष 2009 में किया गया था। स्थानीय चुनावों में मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने वाला छत्तीसगढ़ भारत का पहला राज्य था। नोटा बटन ने 2013 के विधानसभा चुनावों में चार राज्यों छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश और दिल्ली में अपनी शुरुआत की। वर्ष 2014 से नोटा पूरे देश मे लागू हुआ। 2018 में नोटा को भारत में पहली बार उम्मीदवारों के सम कक्ष दर्जा मिला।