लाॅकडाउन की परेशानियों को पीछे छोड़कर आपदा को अवसर में बदलना बागेश्वर जिले के सुनीता गांव के युवाओं को आता है। युवाओं ने अपनी मेहनत और लगन से बंजर हो चुके खेतों में जैविक खेती का प्रयोग किया। यही खेती अब उनकी आर्थिकी को मजबूत कर रही है। वीरान और बंजर खेतों से हजारों की जैविक सब्जियां उगाकर कई ग्रामीणों को रोजगार देने वाले सुनीता गांव के युवा अब खुश हैं।
जिला मुख्यालय से कोसों दूर संसाधनों की कमी झेल रहे कपकोट विकासखंड के हिमालयी क्षेत्र सुनीता गांव के युवाओं ने अपने विकास के रास्ते खुद तलाशने शुरू कर दिये हैं। दो दशक पहले इस गांव के अधिकांश परिवार रोजगार और बेहतर शिक्षा की तलाश में शहर का रूख कर गये मगर वहां की चकाचैंध में ऐसे फसे कि वहीं के होकर रह गये। लाॅकडाउन में गांव के कई युवा ऐसे हैं जो वापस घर लौटे और यहीं के होकर रह गये। सुनीता गांव के रहने वाले युवा संकल्प मिश्रा और सुनील मिश्रा इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। दोनों युवा महानगर में अच्छी खासी नौकरी करते थे। परिवार के साथ खुश भी थे। मगर लाॅकडाउन में उन्हें सबकुछ छोड़कर घर आना पड़ा। करीब दो-तीन महीने तक अपने भविष्य के बारे में सोचते रहे। फिर एक दिन दोनों युवाओं ने बंजर खेतों को हरा भरा करने की ठानी। मेहनत रंग लायी और गांव के पारंपरिक खेती में शहर की नई तकनीक का प्रयोग किया। सरकारी योजनाओं के लिये उद्यान विभाग से संपर्क किया। दोनों युवाओं की मेहनत रंग लायी और बंजर खेत फिर से लहलहा उठे।
युवा बताते हैं कि ग्रामीणों के पलायन से खेत वीरान और बंजर हो चुके थे। खेत झाड़ियों से पट चुके थे। मगर आज उन्हीं खेतों में बागवानी से हजारों की कीमत वाली सब्जियां उग रही हैं। लोग उनके खेतों से ही बाजार मूल्य पर जैविक सब्जियां ले जा रहे हैं। सब्जियों की जो कीमत बाजार में मिलती है उससे अधिक कीमत उन्हें उनके खेतों में मिल रही है।
– संकल्प मिश्रा, प्रगतिशील युवा।
कपकोट विकासखंड मेें सुनीता गांव के युवाओं के हौंसले देखकर उद्यान विभाग के अफसर भी गदगद हैं। उन्हें भरोसा है कि उनकी पहली मेहनत को रंग लायी है। अगर ऐसे युवाओं को और प्रोत्साहित किया जाय तो भविष्य में बेहतर परिणामों की उम्मीद की जा सकती है।
– आरके सिंह, जिला उद्यान अधिकारी।
एफबीओ- बहरहाल बागेश्वर जिले में दूरस्थ हिमालयी क्षेत्र सुनीता गांव के युवाओं ने तो खेतों में मेहनत कर अपनी तकदीर बदल दी है। अब जरूरत है ऐसे युवाओं को तलाशने की जो संसाधनों और प्रोत्साहन की कमी के कारण अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं।