● जिस कर्नल पुरोहित पर इतना बड़ा आतंकवाद में लिप्त होने का आरोप लगा उस कर्नल पुरोहित के खिलाफ 9 साल में (6 साल कांग्रेस और 3 साल भाजपा) इनके शासन काल में, सबूत तो दूर की बात ATS और NIA को चार्जशीट फाइल करने लायक भी तथ्य नही मिले.
● भारतीय सेना ने कर्नल पुरोहित को आतंकवादी या आतंकवाद में सहयोग करने वाला नही माना. कांग्रेस ने भले ही पुरोहित को जेल में डाल दिया मगर सेना ने 9 साल के जेल में रहने के बाद भी न तो कर्नल पुरोहित को न बर्खास्त किया न उनका वेतन रोका. उनके खाते में हर माह वेतन पहुचता रहा. उनको इंक्रीमेंट मिलता रहा. वो सेना के अफसर बने रहे. अगर कर्नल पुरोहित आतंकवादी थे, तो एक आतंकवादी को भारतीय सेना 9 साल से वेतन दे रही है और अपना अफसर क्यों मान रही है? और सरकार चुप क्यों थी? सरकार की हिम्मत क्यों नही हुई सेनाध्यक्ष से ये कहने की कर्नल को नौकरी से बर्खास्त करो?
‘स्टोरी’ की पृष्ठभूमि
याद कीजिये जब कांग्रेस के शासन में आये दिन भारत के कई हिस्सों में, सिमी के इस्लामिक आतंकवादी बम फोड़ा करते थे। कभी संकटमोचन मंदिर, कभी दिल्ली, कभी जयपुर, कभी हैदराबाद तो कभी अहमदाबाद….पूरे भारत ने बमों से चिथड़े हुई लाशों को देखने को अपनी नियति मान लिया था।
उस समय कर्नल पुरोहित को भारतीय सेना ने सीक्रेट मिशन पर भेजा, कर्नल श्रीकांत पुरोहित का कार्य भारत के इस्लामिक जेहादी संगठनों में “मुसलमान” बनकर पैठ बनाना था, जिससे कि उन्हें देश में होने वाले अगले हमले का पता चले और वो सिमी के इस्लामिक आतंकवाद के मॉड्यूल को तोड़ सके. इधर देश में रोज हो रहे बम ब्लास्ट में मुस्लिम युवको की संलिप्तता और धर पकड़ के कारण कांग्रेस दबाव में थी कि उसका मुसलमान वोट बैंक छिटक न जाये, मगर दूसरी ओर कार्यवाही का दबाव भी था क्योंकि सरकार कांग्रेस की थी।
कांग्रेस ने उस समय मीडिया के कुछ दलालों की सहायता से “हिन्दू आतंकवाद” “भगवा आतंकी” “सैफरॉन टेरर” की कहानियां गढ़ने की प्लानिंग की और इसी क्रम में तत्कालीन कांग्रेसी गृहमंत्री ने “हिन्दू आतंकवाद” वाला बयान दिया था.
इधर कर्नल पुरोहित विभिन्न इस्लामिक आतंकवादी संगठनों में मुसलमान बनकर अपनी पैठ बना रहे थे, बम विस्फोट के पैसों लिए फंडिंग कहां से होती है इसकी खोजबीन करते-करते उनके हाथ, नकली नोटों के कारोबारियों और कांग्रेसी राजनेताओं की साठगांठ से संबंधित सबूत लग गए. यदि ये सूचना कर्नल पुरोहित सार्वजनिक कर देते तो बहुत बड़ी उथल पुथल हो जाती और तत्कालीन कांग्रेस सरकार यूपीए सरकार के गिरने का खतरा भी था. यहीं से शुरू होती है कर्नल पुरोहित की मुसीबत.
कांग्रेसी नेताओं और नकली नोट के व्यापारियों ने प्लान बनाया कि, कर्नल पुरोहित नकली नोटो द्वारा आतंकवादियों की फंडिंग का खुलासा करें तथा उसमें किसी कांग्रेसी नेता के संलिप्त होने का खुलाशा हो, इनको किसी केस में फंसा दिया जाए. इसी समय कांग्रेस सरकार “हिंदू आतंकवाद” वाली थ्योरी भी स्थापित करना चाहती थी और कर्नल पुरोहित इसके सबसे अच्छे शिकार थे, क्योंकि वह पहले से ही विभिन्न इस्लामिक संगठनों में पैठ बना रहे थे और सेना के आदेश पर, कुछ हिंदू संगठनों में भी उन्होंने अपने संबंध बनाए थे जिससे कि उन्हें इन्वेस्टीगेशन के लिए तथ्य मिल सके. कर्नल पुरोहित को मालेगांव ब्लास्ट में विस्फोटक मुहैया कराने के आरोप में फसा दिया. जबकि जब मालेगांव ब्लास्ट हुआ तो कर्नल पुरोहित भोपाल की एक सेना के कैंप में अरबी भाषा की ट्रेनिंग ले रहे थे, जिससे कि वह आतंकवादियों के बीच आसानी से अपनी पैठ बना सकें.
कर्नल पुरोहित के अनुसार उन्हें 24 अक्टूबर 2008 को भोपाल से ड्यूटी से अस्थाई डिस्चार्ज देकर दिल्ली मुख्यालय भेजा गया मगर कांग्रेस के इशारे पर अधिकारियों ने उन्हें, सेना नियमो का उलंघन करते हुए मुम्बई एटीएस के हवाले कर दिया, मुम्बई एटीएस के मुखिया कुख्यात हिन्दू विरोधी, कांग्रेस भक्त और दिग्विजय सिंह के इशारे पर कार्य करने वाले “हेमंत करकरे” थे.
हेमंत करकरे ने कांग्रेस के इशारे पर लगभग एक सप्ताह तक खंडाला में कर्नल पुरोहित को टार्चर कराया और ये दबाव बनाया कि कर्नल पुरोहित मालेगाँव ब्लास्ट में अपना हाथ स्वीकार कर लें, जिससे कि हिन्दू आतंकवाद वाली कांग्रेस की काल्पनिक थ्योरी को देश विदेश में प्रचारित कर हिंदुओं को भी आतंकवादी के रूप में स्थापित किया जाए. लगभग एक हफ्ता घोर प्रताडना के बाद 5 तारीख को कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी दिखाई गई. कर्नल पुरोहित को धमकी दी गई कि उनकी पत्नी, बहन, माँ को उनके सामने नंगा किया जाएगा.
मगर कर्नल पुरोहित ने झूठे आरोप स्वीकार नही किये तो अंत में एटीएस मुखिया करकरे ने धमकाकर कुछ अन्य अधिकारियों का बयान कर्नल पुरोहित के खिलाफ लिया और उन अधिकारियों ने भी बाद में न्यायालय में इस बात का खुलासा किया कि उनको धमकी देकर कर्नल के खिलाफ बयान लिया गया.
तत्कालीन एटीएस मुखिया हेमंत करकरे को हिन्दू आतंकवाद को फर्जी तरीके से फैलाने का ठेका कांग्रेस ने दिया था इसी क्रम में उन्हीने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर भी अमानवीय अत्याचार किये. उनका भगवा वस्त्र उतार लिया गया, उनके मुह मे माँस डाला गया और तो और एक हिन्दू साध्वी को करकरे के इशारे पर प्रताड़ित करते हुए ब्लू फिल्म जबरिया दिखाई गई.
साध्वी के एक परिचित को बुलाकर साध्वी के सामने नंगा किया गया. हेमंत करकरे को साध्वी का श्राप तुरन्त लगा. हेमन्त उस इस्लामिक आतंकवाद का शिकार बने जिसको बचाने के लिए वो कांग्रेस के इशारे पर फर्जी “हिन्दू आतंकवाद” शब्द स्थापित करने के लिए साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत दर्जनों पर अमानवीय अत्याचार करते रहे.
ध्यान दीजियेगा की हेमंत करकरे की मृत्यु के बाद सबसे ज्यादा हल्ला दिग्विजय और कांग्रेस ने मचाया था और कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने तो 26/11 के आतंकवादी हमलों को आरएसएस की साजिश बताते हुए एक किताब भी लांच कर डाली.
यहां दो आवश्यक बिंदु पर गौर करिए
● जिस कर्नल पुरोहित पर इतना बड़ा आतंकवाद में लिप्त होने का आरोप लगा उस कर्नल पुरोहित के खिलाफ 9 साल में (6 साल कांग्रेस और 3 साल भाजपा) इनके शासन काल में, सबूत तो दूर की बात ATS और NIA को चार्जशीट फाइल करने लायक भी तथ्य नही मिले.
● भारतीय सेना ने कर्नल पुरोहित को आतंकवादी या आतंकवाद में सहयोग करने वाला नही माना. कांग्रेस ने भले ही पुरोहित को जेल में डाल दिया मगर सेना ने 9 साल के जेल में रहने के बाद भी न तो कर्नल पुरोहित को न बर्खास्त किया न उनका वेतन रोका. उनके खाते में हर माह वेतन पहुचता रहा. उनको इंक्रीमेंट मिलता रहा. वो सेना के अफसर बने रहे. अगर कर्नल पुरोहित आतंकवादी थे, तो एक आतंकवादी को भारतीय सेना 9 साल से वेतन दे रही है और अपना अफसर क्यों मान रही है? और सरकार चुप क्यों थी? सरकार की हिम्मत क्यों नही हुई सेनाध्यक्ष से ये कहने की कर्नल को नौकरी से बर्खास्त करो?
क्योंकि भारतीय सेना कर्नल के साथ थी. कोर्ट से कर्नल पुरोहित को जमानत मिल गई, साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ भी कांग्रेसी फर्जी सबूत नही बना पाए. मगर मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर इस सेना के अफसर के 9 साल क्या काँग्रेसी नेता वापस करेगे?
हिंदुओं को आतंकवादी साबित करने की कांग्रेस की थ्योरी की हवा तो निकल गई मगर क्या कांग्रेस द्वारा हिन्दू समाज को कलंकित करने की इस थ्योरी पर हिन्दू समाज प्रतिउत्तर देगा या मौन बना रहेगा.