जिन्हें यह भ्रम है कि राष्ट्रीयता की संघ धारा में बौद्धिक विमर्श कर सकने लायक व्यक्ति नहीं होते, वे प्रो. देवेंद्र स्वरूप को जानें और समझें। जैसे ही वे ऐसा करेंगे, उनका भ्रम टूट जाएगा। आग्रह की वह दीवार ढह जाएगी। सामने होगा खुला मैदान, जो संवाद का होगा। जीवन भर संचित अपनी अमूल्य धरोहर को जनउपयोग के लिए सौंप देना विस्मरणीय और एेतिहासिक अवसर था। देवेंद्र स्वरूप जी के श्री चरणों में नमन!
नई दिल्ली (संवाददाता) : इतिहासकार, पत्रकार, पांचजन्य के पूर्व संपादक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक, संविधान के गहन अध्येता, गांधी दर्शन के मर्मज्ञ, संवाद पुरुष श्री देवेन्द्र स्वरूप ने जीवन भर संचित अपनी अमूल्य धरोहर, अर्थात पुस्तकों को दान करने के संधि पत्र पर हस्ताक्षर किए।
जानकर आश्चर्य हुआ कि उनके निजी संग्रह में ही 20 हजार से अधिक पुस्तकें हैं। जिनमें से अब 16 हजार से अधिक पुस्तकें ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र’ के पुस्तकालय का हिस्सा हो जाएंगी। इस आशय का दस्तावेज रविवार को केन्द्र के सदस्य सचिव श्री सच्चिदानंद जोशी व श्री देवेन्द्र स्वरूप जी ने हस्ताक्षरित किया। केन्द्र के अध्यक्ष व वरिष्ठतम पत्रकार श्री रामबहादुर राय ने उसकी प्रति श्री देवेन्द्र स्वरूप को सौंपी। यह अविस्मरणीय और एेतिहासिक अवसर था।
भारत की सनातन यात्रा में जो-जो और जब-जब प्रवाह पैदा हुए, उसे अगर समझना हो तो देवेंद्र स्वरूप को पढ़ना जरूरी होगा। उन्हें सुनना भी ऐसा अनुभव होता है मानो इतिहास की तरंगों में आप खेल रहे हों। जिन्हें यह भ्रम है कि राष्ट्रीयता की संघ धारा में बौद्धिक विमर्श कर सकने लायक व्यक्ति नहीं होते, वे प्रो. देवेंद्र स्वरूप को जानें और समझें। जैसे ही वे ऐसा करेंगे, उनका भ्रम टूट जाएगा। आग्रह की वह दीवार ढह जाएगी। सामने होगा खुला मैदान, जो संवाद का होगा। जीवन भर संचित अपनी अमूल्य धरोहर को जनउपयोग के लिए सौंप देना विस्मरणीय और एेतिहासिक अवसर था। देवेंद्र स्वरूप जी के श्री चरणों में नमन!