”नाना जी देशमुख- मूल्यपरक सामाजिक जीवन के प्रणेता” प्रेरणा शोध संस्थान  नोएडा हुई गोष्ठी।

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नोएडा (प्रेरणा शोध संस्थान) :  नोएडा में मासिक बौद्धिक संगोष्ठी की श्रखंला में 18 वीं गोष्ठी नाना जी देशमुख- मूल्यपरक सामाजिक जीवन के प्रणेता विषय पर 19 नवंबर 2017 को दोपहर 3 बजे से आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. एम.पी.दुबे जी, कुलपति, उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद एवं मुख्य वक्ता के रूप में श्रीमान प्रफुल्ल केतकर जी सम्पादक, आर्गेनाइजर उपस्थित थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. ज्योत्सना शर्मा, सुविख्यात कवियित्री एवं एसोसिएट प्रोफेसर हिंदी तथा सान्निध्य माननीय कृपाशंकर जी, संयुक्त क्षेत्र प्रचार प्रमुख, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड का मिला। मुख्य वक्ता श्रीमान प्रफुल्ल केतकर जी ने नाना जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दीनदयाल जी को समझे बिना नाना जी को समझना असंभव है।

उन्होंने नाना जी को उधृत करते हुए बताया कि भारत में विचारधारा का संघर्ष वास्तव में भारतीय और अभारतीय के बीच है। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय चिंतन राज्य केंद्रित नहीं बल्कि समाज केंद्रित हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि उपनिवेशक शक्तियों में आक्रमण के बाद यदि राजा ने अपनी उपासना पद्वति बदली तो पूरे समाज ने अपनी पद्वति बदल दी। लेकिन भारत इसका अपवाद रहा, क्योंकि इसका चिंतन राज्य केंद्रित नहीं बल्कि समाज केंद्रित था। दुर्भाग्यवश भारत में भी स्वतंत्रता के बाद चिन्तन राज्य केंद्रित हो गया। जिस कारण आम जनजीवन राज्य की गतिविधियों पर निर्भर होता गया। जिसको लेकर नाना जी ने समय- समय पर अपनी चिंताएं जाहिर की। नाना जी का चिंतन पूर्णतः भारतीय मूल्यों आधारित था। जिसको मूर्तरूप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में मिला। वे अपने चिंतन का एवं लक्ष्यपरक कार्यप्रणाली का श्रेय अपने संघ शिक्षण-प्रशिक्षण को देते थे। वे समाज के लिए समाज द्वारा ही सामाजिक संपत्तियों के निर्माण अनुप्रयोग एवं संरक्षण पर बल देते थे।

उन्होंने कहा राष्ट्र का निर्माण भारतीय सोच से ही संभव है और अभारतीय सोच कभी भी मूल्यपरक राज्य एवं राजनीति व्यवस्था का निर्माण नहीं कर सकती है। नाना जी का मानना था कि राजनीतिक मूल्य, सामाजिक मूल्य व्यक्ति के मूल्यों से कभी अलग नहीं हो सकते। यदि इसमें विलगाव होता है तो समाज अधोन्मुख होने लगता है। राजनीतिज्ञों की कथनी एवं करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। समाज सेवकों को प्रयोगधर्मी होना चाहिए। लेकिन आज के युग में यह देखने को नहीं मिलता है। राष्ट्र को दलगत राजनीति से ऊपर रखना महत्वपूर्ण सामाजिक मूल्यों में से एक है।

मुख्य अतिथि प्रो. एम. पी दुबे जी के अनुसार नाना जी देशमुख का जीवन भी अभाव में बीता। उन्होंने गोरखपुर में सर्वप्रथम शिशु मंदिर की स्थापना की। प्रो. दुबे ने विकास के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक सुधार एवं ग्रामीण विकास की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने अपने व्याख्यान में आजादी मिलने के बाद राष्ट्र निर्माण के लिए विभिन्न माॅडल्स के बारे में अवगत कराया। नेहरू महलनोबिल माडल जो इंडस्ट्री पर आधारित था एकांगी होने के कारण उतना कारगर सिद्ध नहीं हो सका। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि नाना जी इस बात पर बल देते थे कि केवल आर्थिक उन्नति से विकास संभव नहीं है। विकास के लिए व्यक्ति और समाज के बीच समन्वय महत्वपूर्ण है और विकास का लाभ सभी वर्गों तक पहुंचना चाहिए।

अन्त में कार्यक्रम अध्यक्ष डा. ज्योत्सना शर्मा जी ने नाना जी देशमुख के ग्रामीण विकास के समग्र दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला एवं ओजस्वी कविता के माध्यम से प्रतिभागियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस कार्यक्रम में सुभाष सिंह जी (प्रबंध सम्पादक, केशव संवाद) सदस्य डा. संजीव शर्मा जी, डा. एस. एन. गुप्ता जी, प्रो. वन्दना पांडेय जी, नीता सिंह जी, प्रतिभा सिंह जी, शिव प्रताप सिंह जी पवन शर्मा जी, प्रो एस. सी गुप्ता जी डा. प्रदीप जी आदित्य देव त्यागी जी, वीरेन्द्र जी आदि उपस्थि रहे। इस अवसर पर केशव संवाद पत्रिका के सुशासन के नायक अंक का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन बौद्धिक कार्यशाला समिति के संयोजक प्रो. अखिलेश मिश्र ने किया।

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